सोमवार, 5 अप्रैल 2010

ख़ता की, जो सच कह बैठे

- नरेश सोनी -

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर जिले में एक ऐसी घटना घट गई, जो सरकार के लिहाज से कतई उचित नहीं थी। हुआ यह कि यहां के जिला पंचायत प्रभारी सीईओ (आईएएस) एपी मेनन ने जिला पंचायत के पहले सम्मेलन में सरकार की जमकर आलोचना की। उनका कहना था कि प्रदेश की डॉ. रमन सिंह सरकार के पास विकास की कोई योजना है, न स्पष्ट नीति। यह सरकार महज सस्ता चावल बांटकर क्षेत्र का विकास करना चाहती है। यदि सरकार को गरीबों को चावल ही देना है तो अरवा या उसना की बजाए बासमती दे। मेनन ने सरकार की नक्सल उन्मूलन नीति पर भी कई सवाल उठाए।
जाहिर है कि जो लोग आइना देखने से बचते रहे हैं, उन्हें एक अफसर का इस तरह की कटु टिप्पणियां करना पसंद नहीं आया। नतीजतन मेनन को पद से हटा दिया गया। उनकी जगह पी. प्रकाश को बीजापुर जिला पंचायत का नया सीईओ बनाया गया है। अब बात मेनन द्वारा दिखाए गए आइने की - प्रदेश की सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र के अनुरूप प्रत्येक गरीब परिवार को एक और दो रूपए किलो चावल मुहैय्या करा रही है। प्रारंभिक तौर पर देखने पर तो यह योजना क्रांतिकारी लगती है, किन्तु इसके दुष्प्रभाव अब नजर आने लगे हैं। केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना का भट्ठा बैठ चुका है। इस योजना के लिए प्रशासन को मजदूर सिर्फ इसलिए नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि मजदूरों को महीने में महज 30 रूपए खर्च कर भरपेट भोजन मिल जा रहा है। नमक तो खैर मुफ्त में मिल ही रहा है। अब जिनको इस दर पर अनाज मिल रहा हो, वह मेहनत क्यूंकर करेगा? ...सीधे-सीधे सरकार की सस्ता चावल बांटने वाली योजना ने गरीब, मजदूरों को अलाल और कामचोर बनाकर रख दिया है। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए यह सबसे बड़ी खतरे की घंटी है कि उसका मानव श्रम घरों में दुबका रहकर जनसंख्या बढ़ाने का काम करे, और अपनी हड्डियों में जंग लगवा बैठे। यदि कल यह सरकार नहीं रही और अगली सरकार ने चावल योजना को बंद कर दिया या सीमित कर दिया तो अलाल और कामचोर बन चुके लोगों और उनके परिवार का क्या होगा?
वास्तव में सस्ते चावल जैसी योजनाएं चलाने की बजाए सरकार को स्वरोजगार या रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम चलाना था। (सरकार यह तर्क दे सकती है कि वह ऐसा कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।) इस तरह के कार्यक्रमों में लागत भी कम आती और लोगों को आजीविका का स्थाई साधन भी मिल पाता। इस लिहाज से देखें तो आईएएस एलेक्स पाल मेनन की बातों में भविष्य की चिंता झलकती है। भले ही उनकी साफगोई को सरकार विरोधी बताया जा रहा हो, लेकिन ऐसे अफसर सम्मान के पात्र होते हैं। दरअसल, मेनन के बयान की जब मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुंची तो प्रदेश के मुखिया ने मुख्य सचिव जॉय उम्मेद को तलब तक मेनन को तत्काल हटाने का आदेश दिया। इसी आदेश के तहत मेनन को बीजापुर जिला पंचायत से चलता किया गया। बीजापुर को अलग राजस्व जिला बनाए जाने के बाद यहां पहली बार जिला पंचायत का गठन हुआ है।

उसना पर बवाल

अपने चुनावी घोषणा-पत्र के अनुरूप राज्य सरकार गरीबों को अब तक अरवा चावल उपलब्ध कराती रही है, किन्तु चावल की कमी के चलते उसे पड़ोसी राज्यों से उसना चावल आयात करना पड़ रहा है। आमतौर पर छत्तीसगढ़ के लोग उसना चावल नहीं खाते हैं। कई लोगों ने शिकायत भी की है कि सरकार द्वारा जबरिया दिए जा रहे उसना चावल खाने से पेट में दर्द, ऐंठन और दस्त जैसी शिकायतें सामने आ रही है। यह मामला विधानसभा में भी उठ चुका है और पूरे प्रदेश में अरवा की बजाए उसना चावल दिए जाने को लेकर सरकार की आलोचना भी हो रही है। दरअसल, उसना चावल दिए जाने की भी अपनी वजह बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि सरकार की अपेक्षाओं से विपरीत राज्य में गरीबों की संख्या अकस्मात इतनी बढ़ गई कि प्रत्येक को चावल देना संभव नहीं हो रहा था। इसीलिए उसना चावल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसका एक फायदा यह है कि उसना चावल का नाम सुनते ही लोग चावल लेने से मना कर देते हैं। दूसरा फायदा यह है कि चावल का उठाव कम होने से सरकार को होने वाला नुकसान भी कम होगा। ...और सबसे बड़ी बात इस योजना पर ज़ाया होने वाला सरकार का वक्त भी बचेगा।

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