शुक्रवार, 26 मार्च 2010

क्या महंत होंगे केन्द्रीय मंत्री?

रायपुर। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल और छत्तीसगढ़ को लम्बे समय बाद प्रतिनिधित्व मिलने की खबरों से राज्य के आला नेताओं के कान खड़े हो गए हैं। पिछले दिनों हमने अपने इसी ब्लाग में कहा था कि यहां से खाली हो रही मोहसिना किदवई की राज्यसभा सीट पर कई लोगों की निगाहें लगी हुई है। छत्तीसगढ को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिलने के संकेत के साथ ही राज्यसभा की उम्मीद पालने वालों की संख्या और बढऩे की संभावना है। फिलहाल इस राज्यसभा सीट पर वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल की निगाहें लगी हुई हैं। उनके अलावा लोकसभा सांसद चरणदास महंत, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, पूर्व मंत्री अरविंद नेताम भी प्रमुख दावेदारों में शुमार हैं। इन नेताओं के समर्थकों को लगता है कि यदि यह सीट हाथ गई तो केन्द्रीय मंत्री का पद ज्यादा दूर नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ से खाली हो रही राज्यसभा सीट के लिए दावेदार कौन होगा, यह तो फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा की पसंद को जरूर तवज्जो मिलेगी। लम्बे समय से कांग्रेस का कोष संभालने वाले वोरा समन्वय की राजनीति पर यकीन करते हैं और इसीलिए किसी ऐसे नेता के चुने जाने की संभावना कम ही है जो गुटबाजी को प्रश्रय देता है। इसके अलावा पार्टी के प्रति निष्ठा भी प्रमुख पैमाना होगा, ऐसा जिम्मेदार नेताओ का मानना है। इधर, आदिवासी वर्ग को प्रतिनिधित्व दिए जाने की भी मांग उठने लगी है। आदिवासियों के प्रमुख गढ़ बस्तर से कांग्रेस फिलहाल पूरी तरह साफ है और यदि इस वर्ग को महत्व मिलता है तो भविष्य में पार्टी को फायदा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन दिक्कत यह है कि कांग्रेस के पास प्रभावशाली आदिवासी नेतृत्व का अभाव है। विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा और पूर्व मंत्री अरविंद नेताम का नाम उभरकर जरूर आता है, पर कर्मा विधानसभा चुनाव में हार के बाद से घर में बैठे हुए हैं। सलवा जुड़ूम अभियान चलाने और नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोले जाने को लेकर वे किसी समय खूब चर्चा में रहे, किन्तु अब उनकी गतिविधियां भी ठप्प पड़ी हुई हैं। किसी समय विश्वव्यापी सुर्खियां बटोरने वाला सलवा जुडूम अभियान अब बंद हो चुका है। नक्सलियों से बैर मोल लेने की वजह से कर्मा परिवार को कई बलिदान देने पड़े। अब भी महेन्द्र कर्मा नक्सलियों की हिटलिस्ट में हैं। दूसरी ओर अरविंद नेताम तो कई बरसों से सक्रिय नहीं हैं। विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पुत्री प्रीति नेताम को टिकट दिलवाई थी, किन्तु वे उसे जितवाकर नहीं ला पाए।
पृथक राज्य बनने के बाद से ही कांग्रेस के सत्ता और संगठन में गुटबाजी हावी रही है। जोगी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उन्होंने बाकी गुटों को जमकर पानी पिलाया। नतीजतन तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को उनके समक्ष समर्पण करना पड़ा जबकि उन्हें वोरा का खास समर्थक माना जाता था। विद्याचरण शुक्ल छिटककर दूसरे दल में चले गए तो खुद वोरा ने राज्य की राजनीति से तौबा कर ली और चुप हो गए। यह हालात लगातार कायम रहे जब तक विधानसभा के चुनाव में पार्टी को पराजय नहीं मिली। भाजपा के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के बाकी सभी गुट एकजुट हो गए और जोगी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यही स्थिति आज भी बरकरार है। हालांकि अब जोगी दम्पत्ति विधायक हैं और अपने पुत्र अमित जोगी को युवक कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनवाने प्रयासरत् हैं। लेकिन उन्हें अन्य वरिष्ठ नेताओं का समर्थन नहीं मिल पा रहा है। इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि जोगी राज्यसभा तक पहुंच पाएंगे।
मिल रही खबरों के मुताबिक, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल का खाका खींचा जा रहा है। संभावना है कि जून-जुलाई में यह काम कर लिया जाएगा। फिलहाल केन्द्रीय मंत्रिमंडल में 78 मंत्री हैं। जबकि अधिकतम 81 मंत्री बनाए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ को छोड़कर लगभग सभी राज्यों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से इकलौते चरणदास महंत ही चुनाव जीते थे। इसलिए महंत स्वाभाविक दावेदार के रूप में भी सामने आ रहे हैं। पार्टीजनों की मानें तो उनके नाम पर किसी को ऐतराज भी नहीं होगा। वे युवा हैं और कांग्रेस में फिलहाल युवाओं को ज्यादा तरजीह दी जा रही है।
००००

इस थप्पड़ की गूंज दूर तक जाएगी नेताम जी

रायपुर। विधिमंत्री रामविचार नेताम के एक थप्पड़ ने छत्तीसगढ़ में भूचाल ला दिया है। इस थप्पड़ की गूंज अब तक महसूस कर रहे बिलासपुर के एसडीएम संतोष देवांगन ने मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला तो इसके जवाब में नेताम को बचाने आदिवासी विकास परिषद सामने आ गया है। पूरा मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के बाद अब राज्य प्रशासनिक सेवा के कई अफसर मंत्री को निपटाने की कोशिशों में लग गए हैं। इन कोशिशों को आगे बढ़ाने में भी भाजपा का ही एक वर्ग भरपूर सहयोग कर रहा है। एक ओर जहां आविप ने नेताम को बचाने प्रदेशव्यापी मोर्चा खोल दिया है तो दूसरी ओर संसदीय सचिव और विधायक भैय्यालाल रजवाड़े पूरे घटनाक्रम के लिए एसडीएम देवांगन को ही कटघरे में खड़ा किया है।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति केजी बालकृष्णन पिछले शनिवार को एक कार्यक्रम में शिरकत करने बिलासपुर आए थे। इसी कार्यक्रम में भाग लेने राज्य के विधिमंत्री रामविचार नेताम भी पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद उन्हें पता चला कि एसईसीएल के गेस्ट हाउस में उनके लिए कमरा आरक्षित नहीं करवाया गया है। मंत्री नेताम ने पूछताछ की तो कोई जवाब देने वाला नहीं मिला। नतीजतन मुख्य न्यायाधिपति के कार्यक्रम में ड्यूटी बजा रहे बिलासपुर के एसडीएम संतोष देवांगन को गेस्ट हाउस बुलाया गया जहां मंत्री ने बातचीत के दौरान कथित तौर पर देवांगन को थप्पड़ मार दिया। एसडीएम देवांगन ने दूसरे दिन कलेक्टर सोनमणि बोरा को घटना की लिखित जानकारी दी। बाद में उन्होंने राज्य प्रशासनिक सेवा संघ से भी मामले की शिकायत की। संघ ने राजधानी रायपुर में एक आपात बैठक करने के बाद पूरे वाकये से मुख्यमंत्री को अवगत कराया और दोषी मंत्री पर कार्यवाही की मांग की।
खुद के खिलाफ इस तरह मोर्चा खोले जाने की उम्मीद शायद विधिमंत्री को भी नहीं थी। दरअसल, उनकी अपनी पार्टी के कई लोग इस मामले को तूल दे रहे थे। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता नेताम की कार्यप्रणाली से नाखुश बताए गए हैं। शायद इसीलिए एक बेहतरीन मौका हाथ लगने के साथ ही उन्होंने आग में घी डालना शुरू कर दिया। मंत्री नेताम को इसकी जानकारी हुई तो आदिवासी विकास परिषद को सामने ले आए। अब परिषद एसडीएम मारपीट प्रकरण को आदिवासी समाज के साथ जोड़कर पुतले फूंकने और राज्यव्यापी माहौल बनाने की कोशिश कर रही है। उसके नेताओं का आरोप है कि आदिवासी मंत्री को अकारण फंसाया जा रहा है। इधर, भाजपा के ही एक विधायक और संसदीय सचिव भैय्याराल रजवाड़े ने एसडीएम संतोष अग्रवाल पर ही ठिकरा फोड़ दिया है। उनके मुताबिक, ''एक बार देवांगन ने उनसे परिचय मांगते हुए कह दिया था कि किसी के माथे पर नहीं लिखा है कि संसदीय सचिव है।ÓÓ
दूसरी ओर बिलासपुर के राजपत्रित अधिकारी संघ ने मंत्री रामविचार नेताम के कृत्य की आलोचना करते हुए ग्राम सुराज अभियान के बहिष्कार और मंत्री के प्रोटोकाल से पल्ला झाडऩे की चेतावनी दी है। यदि ग्राम सुराज जैसा अभियान असफल होता है तो इससे सरकार की किरकिरी होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल इस मामले से उपजा विवाद थमता नहीं दिख रहा है। विरोध और बचाव का क्रम यदि इसी तरह जारी रहा तो संभव है कि मुख्यमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़े। प्रशासनिक अफसर जिस तरह से मंत्री के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं, उसके बाद इस बात की भी संभावना बढ़ गई है कि कहीं मंत्री नेताम ही न निपट जाएं। कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि मंत्री के थप्पड़ की गूंज दूर तक जाएगी।