गुरुवार, 18 मार्च 2010

मोहसिना की सीट पर निगाहें

छत्तीसगढ़ के कई नेताओं की निगाहें जून में कार्यकाल पूरा कर रही मोहसिना किदवई की राज्यसभा सीट पर है। किदवई को हज कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया है, इसलिए अब इस बात की संभावना कम ही है कि उन्हें फिर से राज्यसभा में भेजा जाए। राज्य के कई दिग्गजों की राजनीति जंग खा रही है। ऐसे कांग्रेसियों की मंशा एक बार फिर अपनी राजनीति को चमकाने की है। इसके लिए प्रयास भी तेज कर दिए गए हैं। आलाकमान तक सम्पर्क बनाने और मेल-जोल बढ़ाने का काम भी शुरू हो गया है।
कांग्रेस की महासचिव मोहसिना किदवई का कार्यकाल 29 जून को खत्म हो रहा है। अब तक जो संकेत मिले हैं, उसके मुताबिक, पार्टी आलाकमान ने किदवई को रिपीट नहीं करने का मन बना लिया गया है। इस संकेत के साथ ही राज्य के कई प्रमुख नेता सक्रिय हो गए हैं। लम्बे समय से उपेक्षित रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल को इस राज्यसभा सीट का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। इसके लिए उन्होंने कोशिशें भी तेज कर दी हैं। फिलहाल वे आला नेताओ से संबंध सुधारने से लेकर मेलजोल बढ़ाने का काम कर रहे हैं, ताकि मौका आने पर इसे भुनाया जा सके। शुक्ल के समर्थकों की छत्तीसगढ़ में कमी नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि इतने ही विरोधी भी उन्होंने पाल रखे हैं। इसलिए राज्यसभा जाने की उनकी राह आसान नहीं है। कभी छत्तीसगढ़ की राजनीति में एकछत्र राज करने वाले शुक्ल ने कई बार पार्टियां बदली और फिर कांग्रेस में लौटे। अंतिम बार वे भाजपा में चले गए थे, किन्तु बाद में उनकी कांग्रेस में वापसी हो गई। उनके राजनीतिक विरोधी रहे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी खुद इस सीट पर नजर गड़ाए हैं। जोगी के कई समर्थको ने इसके लिए लॉबिंग भी शुरू कर दी है। सिर्फ इतना ही नहीं, जोगी को राज्यसभा में लेने और उसके बाद मंत्रिमंडल में शामिल करने की बातें भी की जाने लगी है। फिलहाल जोगी विधानसभा के सदस्य हैं और उनके स्वास्थ्य को देखते हुए राज्यसभा पहुंचने का रास्ता बंद बताया जा रहा है। वैसे भी, जोगी गुट को छोड़कर और कोई नहीं चाहता कि उन्हें फिर से ऐसा कोई पॉवर मिले कि मुश्किलें पैदा हो। मामला क्योंकि छत्तीसगढ़ से जुड़ा है इसलिए राज्यसभा के लिए चेहरे के चयन में मोतीलाल वोरा की भूमिका अहम होगी। वोरा खुद भी राज्यसभा के सदस्य हैं। वोरा बेहद शांतमिजाज व्यक्ति हैं और आमतौर पर अपनी राय जाहिर नहीं करते हैं।
जोगी के समर्थक और पूर्व विधायक अमरजीत भगत समेत अन्य लोग वरिष्ठ नेताओं के समक्ष अपनी भावनाएं रख आए हैं। समर्थकों के मुताबिक, यदि जोगी को राज्यसभा सदस्य बनाकर मंत्री बनाया जाता है तो छत्तीसगढ़ के साथ ही उड़ीसा और झारखंड जैसे आदिवासी राज्यों में पार्टी को खड़ा करने में आसानी होगी। इधर, बस्तर के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम भी राज्यसभा टिकट की जुगाड़ में हैं। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद चरणदास महंत की मंशा है कि नेताम को आदिवासी आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाए। अनुसूचित जाति कोटे से दो पूर्व सांसद परसराम भारद्वाज और कमला मनहर भी राज्यसभा जाने की इच्छा रखते हैं। फिलहाल दोनों हाशिए पर हैं। इन नामों के अलावा कई और लोग भी हैं, जो राज्यसभा जाने की उम्मीद पाले बैठे हैं। वे हाल-फिलहाल दिल्ली के आकाओं तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में लगे हैं।

टीम में गड़बड़ी है गड़करी जी

भाजपा की बहुप्रतीक्षित टीम गड़करी की घोषणा तो कर दी गई, लेकिन इस टीम को लेकर पार्टी के भीतर ही भीतर असंतोष के स्वर भी सुनाई पडऩे लगे हैं। सबसे ज्यादा नाराजगी छत्तीसगढ़ के आदिवासी वर्ग में है, जिसे कम से कम इस बार तो राष्ट्रीय टीम में शामिल होने की उम्मीद थी। इसके अलावा मुस्लिम तबका भी नाराज़ है।
पिछले करीब 10 वर्षों से छत्तीसगढ़ के आदिवासी समय-बेसमय एकजुट होते रहे हैं और अपनी ताकत का अहसास भी कराते रहे हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के बूते ही भाजपा छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में कामयाब रही। बावजूद इसके सत्ता से लेकर संगठन तक में उनकी उपेक्षा की जाती रही है। राजनाथ सिंह की पिछली टीम में छत्तीसगढ़ से करूणा शुक्ला उपाध्यक्ष और सरोज पाण्डेय सचिव बनाईं गईं थीं। गड़करी ने इन दोनों को इसी पद पर बरकरार रखा है। दिलीप सिंह जूदेव को कार्यकारिणी में रखा गया है तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संसदीय दल के सचेतक रमेश बैस को स्थाई आमंत्रित सदस्य बनाया गया है।
हाल ही में राजधानी रायपुर में पूरे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने रैली कर अपनी ताकत दिखाई थी। इस रैली में भाजपा, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी समेत अन्य दलों के आदिवासियों ने शिरकत की और मुख्यमंत्री और राज्यपाल जैसे अहम् पदों पर अपनी दावेदारी ठोंकी थी। किन्तु भाजपा संगठन में ही उनकी एक बार फिर उपेक्षा कर दी गई। राज्य में आदिवासी एक्सप्रेस चलने की खबरें प्रमुखता पाती रही हैं। खासतौर पर स्वयं को आदिवासी बताने वाले अजीत जोगी के शासनकाल के दौरान आदिवासी लामबंद हुए। इन आदिवासियों का नेतृत्व तब वरिष्ठ भाजपा नेता नंदकुमार साय ने किया था- जो अपनी कठोर टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। संभवत: यही वह वक्त था, जब 'इंदिरा प्रेमी आदिवासी भाजपा की ओर उन्मुख हुए। लेकिन साय को भी इसका कोई प्रतिसाद नहीं मिल पाया। फिलहाल वे हाशिए पर हैं, पर उनकी तैयार की गई जमीन पर भाजपा अब भी वोटों की खेती कर रही है।
सिर्फ आदिवासी ही नहीं, मुसलमानों में भी टीम गड़करी को लेकर नाराजगी का पुट है। मंदिर-मस्जिद मिलकर बनाने, मुसलमानों के साथ सामंजस्य बनाकर काम करने और पार्टी का प्रचलित चोला बदलने की बात करने वाले गडकरी की टीम में अपनी नजरअंदाजी मुसलमान पचा नहीं पा रहे हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ भाजपा में कोई बड़ा मुस्लिम नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आया है, फिर भी अपने समाज को लीड करने वाले कई नेता चिंतित हैं। दरअसल, अपना राजनैतिक कद बढ़ाने की लगातार कोशिशें करने वाले भाजपा के मुस्लिम नेताओं को इस बात की चिंता सता रही है कि अपने लोगों के बीच जाकर वे क्या संदेश देंगे? गौरतलब है कि राज्य के अधिकांश मुसलमान आज भी भाजपा से दूर हैं। विकल्प के अभाव में वे कांग्रेस का साथ देते रहे हैं। उन्हें पार्टी के करीब लाने के लिए भाजपा की अल्पसंख्यक इकाइयां लगातार काम कर रही हैं, लेकिन उनकी कामयाबी का प्रतिशत बेहद कम है। सही मायनों में, छत्तीसगढ़ की अल्पसंख्यक बिरादरी भाजपा को अछूत मानती रही है। उसके कई कट्टरपंथी नेताओं की कड़वी जुबान से यही बिरादरी आहत होती है। शायद यही वजह है कि भाजपा के अल्पसंख्यक नेताओं से समाज के लोग कुछ दूरी बनाकर रखते हैं। भले ही पार्टी के नेता इसे स्वीकार नहीं करे और यह दावा करें कि अब अल्पसंख्यक वर्ग भाजपा के साथ हैं, किन्तु हकीकत यही है कि भाजपा अब तक मुसलमानों का विश्वास अर्जित नहीं कर पाई है।
पार्टी के एक जिम्मेदार मुस्लिम नेता के मुताबिक, हर बार यदि प्रचलित चेहरों को ही मौका दिया जाएगा तो बाकी लोग क्या करेंगे? जो लोग पहले से ही महत्वपूर्ण पदों पर हैं या सांसद, मंत्री हैं, उन्हें ही हर बार महत्व मिलता रहेगा तो उन लोगों का क्या- जो पूरी जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं और जिन पर पूरे समाज या समुदाय की जिम्मेदारी है? प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विष्णुदेव साय के मुताबिक, भाजपा की राष्ट्रीय टीम में प्रदेश के चार पदाधिकारियों दिलीप सिंह जूदेव, करूणा शुक्ला, सरोज पान्डेय व सौदान सिंह सहित सात सदस्यों को दिए प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस नई टीम से प्रदेश को नई दिशा मिलेगी।
दुर्ग जिले की सांसद सरोज पाण्डेय की नेतृत्व क्षमता पर शायद ही किसी को संदेह हो। महज कुछ वर्षों में एक सामान्य कार्यकर्ता से ऊपर उठकर वे दो बार महापौर, 1 बार विधायक और अब सांसद निर्वाचित हुई। कुछ समय में ही उन्होंने प्रदेश भाजपा की प्रवक्ता और राष्ट्रीय मंत्री तक का सफर तय किया। ऐसे नेतृत्व को सामने लाने का पार्टी में जोरदार स्वागत किया जाना चाहिए और सही मायनों में ऐसे युवाओं पर ही भाजपा की भावी कमान होगी। लेकिन पार्टी को और ज्यादा निखारने और छूट रहे बड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व देना भी पार्टी की ही जिम्मेदारी है। बेहद स्वादिष्ट भोजन में एक कंकड़ ही पूरा स्वाद खराब कर देता है। भाजपा के जायके में ऐसा कोई कंकड़ न आए, इसका गड़करी को ध्यान रखना होगा।