शनिवार, 13 मार्च 2010

आधा दर्जन आईएफएस अधिकारियों की होगी जांच

रायपुर, 14 मार्च। लोक आयोग ने मस्टर रोल में गड़बड़ी की शिकायत पर आईएफएस के आधा दर्जन से अधिक अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की जाने की शिफारिश की है।
आयोग से मिली जानकारी के अनुसार सरगुजा रेंज के वन संरक्षक तपेश कुमार झा समेत 7-8 अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई की अनुशंसा की है। फर्जी मस्टर रोल में गड़बड़ी का यह मामला 5-6 साल पुराना है। इस दौरान आईएफएस अफसर झा कांकेर में पदस्थ थे। कांकेर के वन अफसरों के खिलाफ रेंज के नरहरपुर इलाके में फर्जी मस्टर रोल के आधार पर हजारों-लाखों का भुगतान करने की शिकायत की गई थी। लोक आयोग ने शिकायत की जांच के बाद गड़बड़ी के आरोपों को सही पाया। बताया गया कि इलाके के रेंजर और अन्य अधिकारियों ने जानबूझकर फर्जी बिल का भुगतान किया। जांच में पाया गया कि पूरे फर्जीवाड़े की जानकारी तत्कालीन वन मंडलाधिकारी को थी। उन्होंने बिल की जांच-पड़ताल किए बिना भुगतान का आदेश दे दिया। आरोग ने इस मामले में आईएफएस झा के खिलाफ कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह को रिपोर्ट भेज दी है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर होने के कारण पूरी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी गई है। मामले में दोषी बाकी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए वन सचिव को अनुशंसा की गई है।
उल्लेखनीय है कि झा के खिलाफ गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की काफी शिकायतें है। कई मामलों की जांच भी चल रही है। लोक आयोग ने हाल ही में एक आईएएस नंदकुमार समेत चार अफसरों के खिलाफ भी विभागीय जांच की सिफारिश की है। इस मामले में शासन स्तर से कार्रवाई नहीं हुई है।
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चॉइस सेंटरों से लोगों का मोहभंग
रायपुर, 14 मार्च। रायपुर नगर निगम के जन्म-मृत्यू पंजीकरण के लिए स्थापित चॉइस सेंटरों से लोगों का मोहभंग हो गया है। इसका उदाहरण पिछले एक साल से अधिक समय में निगम की चॉइस सेंटरों में मात्र 32 हजार सात सौ नाम ही पंजीकृत हुए है। वजह यह भी है कि, पिछले सात सालों में 23 मे से 10 चॉइस सेंटर बंद हो गए जिसे अब तक चालू नहीं किया जा सका है। इस पर किसी का ध्यान नहीं गया है।
रायपुर की जनसंख्या 13 लाख को पार कर गई है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आम लोगों के जन्म-मृत्युपंजीयन के साथ यहां विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र देनें की व्यवस्था की है। सात वर्षों पूर्व से शहर के 23 अलग-अलग जगहों पर चॉइस सेंटरों के माध्यम से पंजीयन की सुविधा संचालित थी,जो आज सिमट कर 13 जगहों जय स्तंभ चौक,गुढिय़ारी,श्यामनगर सहित अन्य जगहों पर ही सुलभ हैं। जनजागरूकता की कमी से जन्म-मृत्यु पंजीयन के प्रति लोगों का झुकाव घटा है। इसक ी जागरूकता के लिए न तो निगम स्वास्थ्य अमलों के पास फुर्सत है, और न ही यहां से आम लोगों को आसानी से पंजीयन प्रमाण पत्र मिल पातें है। नाम नहीं छापनें की बात पर एक महिला ने बताया कि वे बच्चे के जन्म पंजीयन में नाम की त्रुटि को सुधरवानें उसे पूरे एक माह तक चॉइस सेंटर का चक्कर काटना पड़ा। वहीं यहां पंजीयन के लिए बड़ी औपचारिकता भी पूरी करनी पड़ती है, तब जाकर प्रमाण पत्र मिल पाता है। स्वास्थ्य अमलों का आलम यह है कि शहर में आम लोगों के लिए इन चॉइस सेंटरों की जानकारी उपलब्ध ही नहीं हंंंंै। अधिकारियों को भी चॅाइस सेंटर कि गतिविधि के बारे में जानकारी नहीं हैं। चॉइस सेंटर संचालक डॉ. भग्यलक्ष्मी को अन्य प्रभारों के कारण फुर्सत के समय ही आम लोगों के पंंजीयन का कार्य निपटाती हैं,और स्वास्थ्य अमले की कमी की बात कही जाती है। लम्बे अन्तराल के बाद भी शासन व निगम प्रशासन इन सेंटरों में व्यवस्था व दशा सुधारनें कोई कदम नहीं उठाया है।
13 माह मे 261 विवाह पंजीयन
राजधानी में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में विवाह होतें है, किन्तु नगर निगम स्थित 13 चॉइस सेंटरों में 13 माह में मात्र 261 जोडिय़ों का ही पंजीकृत हुएं है। पंजीकरण के प्रयास में यह आकड़ा बेहद चिंता जनक है। शिशु मृत्यु पंजीयन के मामले में भी इस दौरान मात्र 14 आवेदन प्राप्त हुऐ हैं। मातृत्व मृत्यू का आवेदन सिर्फ 4 आवदन दर्ज हुआ है।
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एक्सपायरी दवा प्रकरण में दो निलंबित
जगदलपुर,14 मार्च। दंतेवाड़ा जिला अस्पताल में जारी मेगा नेत्र शिविर में एक्सपायरी दवाईयों के वितरण के प्रकरण में जिला प्रशासन ने चार स्वास्थ्य कर्मचारियों पर कार्रवाई कर, दो को निलंबित तथा दो को कारण बताओ नोटिस जारी किया है, वहीं इस कार्रवाई को लेकर स्वास्थ्य कर्मियों ने नाराजगी जताते हुए अपर कलेक्टर को ज्ञापन देकर तीन दिवस के भीतर निलंबित कर्मियों को बहाल करने की मांग की है।
स्वास्थ्य कर्मियों ने अपने बयान में कहा है कि प्रशासन पूरे मामले में शिविर के नोडल अफसरों को बचाते हुए छाटे कर्मचारियों को निशाना बना रहा है। स्वास्थ्य कर्मचारियों ने निलंबित कर्मचारियों को तीन दिवस के भीतर बहाल करने का अल्टीमेटम दिया है। उनकी मांगे नहीं माने जाने की स्थिति में आंदोलन पर जाने की बात कर्मचारियों ने की है। ज्ञात हो कि जिला मुख्यालय में एनएमडीसी एवं जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वाधान में 8 मार्च से मेघा नेत्र शिविर का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें प्रथम दिन ही नेत्र रोगियों को कालातीत दवाई देने की तैयारी का मामला प्रकाश में आया है। इस प्रकरण को लेकर प्रशासन ने शुक्रवार की शाम कार्रवाई करते हुए जिला अस्पताल के नेत्र सहायक अधिकारी एन के शाक्या तथा फार्मासिस्ट राहुल सोनकर को निलंबित कर दिया है। जबकि इसी मामले में डाक्टर के अप्पाराव व डाक्टर आर एल गंगेश को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
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मार्कफेड प्रकरण : तीन निलंबित
धमतरी,14 मार्च। मार्कफेड में हुए फर्जीवाड़े के मामले में डीएमओ सहित तीन लोगों को निलंबित कर दिया गया है। जबकि 4 राइस मिलरों के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध है। इस मामले में अगर पिछले तीन वर्षों के रिकार्ड की जांच होती है तो कई और राईस मिलरों के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं।
मार्कफेड के कम्प्यूटर में दर्ज आंकड़े में फेरबदल कर फर्जीवाड़ा करने के मामले में शासन-प्रशासन ने सख्ती से कार्यवाही करते हुए कल 4 राईस मिल पार्वती इंडस्ट्रीज, सुशीला धान प्रक्रिया केन्द्र, ऋषभ राईस प्रोसेसिंग, दिनेश इंडस्ट्रीज के संचालकों एवं अनुबंधकर्ताओं के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471 एवं 34 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया है। इस मामले में विवेचना के लिए पुलिस की एक टीम तैयार की गई है। इधर अपराध पंजीबद्ध होने के बाद राईस मिलर भूमिगत हो गये है। वहीं कम्प्यूटर ऑपरेटर को हटा दिया गया है। मार्कफेड ने कार्यवाही के तहत डीएमओ एल.आर. साहू, गोदाम प्रभारी राजेन्द्र सिंग एवं लेखापाल श्री नागर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इनके स्थान पर दुर्ग के डीएमओ श्री सक्सेना को धमतरी डीएमओ बनाया गया है। इसके अलावा श्री चंद्राकर को लेखापाल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कहा जा रहा है कि इस मामले की सूक्ष्मता से जांच की गई तो कई और भी बड़े मामले का पर्दाफाश हो सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ इस तरह के और राईस मिलर है जिन्होंने फर्जी तरीके से एफडीआर एंट्री कराई है।
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बिना साइकिल लिए भूखी-प्यासी लौटी छात्राएं
महासमुंद,14 मार्च। सरस्वती सायकल योजना अंतर्गत सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में नवमी कक्षा में अध्ययनरत अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की सभी बालिकाओं एवं पिछड़ा वर्ग व सामान्य वर्ग के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार की छात्राओं को सायकिल देने के उद्देश्य से कल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में आमंत्रित हुई सैकड़ों छात्राओं को अपनी पसंद की सायकिल न मिल पाने से मायूस होकर लौटना पड़ा। सरस्वती सायकल योजनांतर्गत विगत तीन मार्च को अपर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित कर सायकल की सभी कंपनियों के प्रतिनिधियों को महासमुंद ब्लाक की 12 मार्च को आयोजित मेले में अपनी कंपनी की मॉडल की सायकलों को स्टॉल लगाने के लिए कहा गया था किंतु आयोजित मेले में मात्र दो कंपनियों एसपी एवं सफारी की ही सायकलें उपलब्ध थी बाकी कंपनी एटलस, हीरो, एंग्लो, नवो की सायकलें मेले में छात्रों को नहीं देखने को मिली जिससे छात्राएं निराश हुई और बिना सायकल पसंद किए घर लौट गई। ज्ञात हो कि शुक्रवार मेले में महासमुंद ब्लाक की 19 स्कूलों से 1314 छात्राओं को सायकल पसंद करने के लिए तीन बजे तक आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में उपस्थित होने के लिए सभी शाला प्रमुखों को सूचना दी गई थी। मेले में शामिल होने के लिए झलप, खट्टी, बेलसोंडा, गढ़सिवनी, तुरेंगा, भोरिंग, रायतुम, तुमगांव, पटेवा, मुंनगाशेर, बेमचा, नरतोरा, बिरकोनी, अछोला, बावनकेरा, शेर, सिरपुर व छपोराडीह से लगभग सैकड़ों छात्राएं अपने पालकों के साथ सुबह 11 बजे से मेला स्थल पहुंचने लगे लगभग 12 बजे तक किसी भी प्रकार की तैयारी न देख छात्राओं सहित पालक भी परेशान होने लगे। और उनकी यह परेशानी जायज भी थी क्योंकि मेला स्थल में पहुंचने पर उन्हें पता चला कि मेला तीन बजे से आयोजित है। पूछने पर पालकों व छात्राओं ने बताया कि शाला प्रमुखों ने उन्हे बारह बजे तक स्थल पहुंचने कहा था। जिसमें झलप, सिरपुर, गढ़सिवनी, खट्टी की छात्राओं की संख्या बहुतायत थी। सुबह से घर से निकली ये छात्राएं भूखे प्यासे दिन भर परेशान होती रही। लंबे इंतजार के बाद करीब चार बजे एसपी कंपनी की सायकले प्रदर्शित की गई। आधे घंटे बाद सफारी सायकल भी मेले में आ गई परंतु छात्राओं एवं पालकों ने इन सायकलों की गुणवत्ता देख उन्हें रिजेक्ट कर दिया। काफी समय इंतजार करने के बाद जब अन्य ग्रामी कंपनियों की सायकल नहीं पहुंची तो छात्राएं निराश होकर लौटने लगी। कई पालकों से यह भी कहते सुना गया कि शासन ने सायकल देने के नाम पर मजाक किया है। उनका कहना था कि सौ-दो सौ रुपए खर्च कर वे यहां पहुंचे और दिन भर भूखे प्यासे रहे वो अगल। शाम हो जाने के कारण जिस रास्तों पर बस सेवा नहीं थी उन जगहों के लिए छात्राओं को बस स्टैंड व उसके आसपास भटकते देखा गया। जिससे पालक भी आक्रोशित हुए। मेला स्थल पर नामी गिरामी कंपनियों की सायकलें न पहुंचना दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए डीइओ श्रीमती मंजूलता पसीने ने शासन से इस बात को अवगत कराने की बात कही।
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बिना लायसेंस के ही खून का कारोबार
भिलाई, 14 मार्च। जिलेे में डोनेट ब्लड का धधा बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है। आलम यह है कि ज्यादातर नर्सिग होम बिना किसी लाइसेंस के ही खून का कारोबार कर रहे हैं। हैरत की बात है कि सब कुछ जानने के बावजूद संबंधित विभाग को कार्यवाही के लिए लिखित शिकायत का इंतजार है।
विभाग के तमाम दावों के बावजूद जिले में डोनेट ब्लड की गैरकानूनी खरीद-फरोख्त का सिलसिला जारी है। नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाइजेशन) की मानें तो दुर्ग- भिलाई के 90 फीसदी नर्सिग होम को इस मामले में नियम-कानून से कोई मतलब नहीं है। तभी तो ये भर्ती मरीजों को जरूरत पडऩे पर किसी ब्लड बैंक से ब्लड लेने के बजाय किसी परिचित या रिश्तेदार का ब्लड अपने यहां ही निकालकर मरीज को चढ़ा रहे हैं। नाको के मुताबिक कायदे से इसके लिए नर्सिग होम को स्वास्थ्य विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है। इसके लिए विभाग लाइसेंस देता है। इधर, ड्रग कंट्रोलर ने माना कि ऐसा होना गंभीर बात है। विभाग इस मामले में कार्यवाही करने को तैयार है, बशर्ते इसकी लिखित शिकायत मिले। वैसे जल्द ही समूचे जिले में एक अभियान चलाकर ऐसे नर्सिग होम्स की जांच कराई जाएगी और दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होगी। यहां बता दें कि पिछले तीन साल में इस बारे में विभागीय स्तर पर कोई पहल नहीं हुई है।
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हाकी खिलाडिय़ों को मिलेगी एस्ट्रो टर्फ की सुविधा
रायपुर,14 मार्च। राजधानी के हॉकी खिलाडिय़ों को एस्ट्रो टर्फ की सुविधा दिलाने की कवायद खेल विभाग ने तेजी से प्रारंभ कर दी है। विभाग की पहल पर जल्द ही अब लोक निर्माण विभाग साइंस कॉलेज में लगने वाले एस्ट्रो टर्फ के लिए टेंडर बुलाने वाला है।
साइंस कॉलेज के मैदान में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से अनुमति लेकर एस्ट्रो टर्फ लगाने की तैयारी खेल विभाग कर रहा है। पूर्व में मुख्यमंत्री को घोषणा के अनुरूप कोटा स्टेडियम के साथ नेताजी स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ लगाना था, लेकिन दोनों स्थानों पर परेशानी होने के कारण एक नई योजना बनाकर एस्ट्रो टर्फ साइंस कॉलेज में लगाने की मंजूरी मुख्यमंत्री से ली गई है। इस मंजूरी के बाद खेल विभाग की पहल पर लोक निर्माण विभाग ने साइंस कॉलेज में उस स्थान का निरीक्षण कर लिया है जहां पर एस्ट्रो टर्फ लगना है। अब लोक निर्माण विभाग से इसकी पूरी योजना बनाकर टेंडर बुलाने की तैयारी कर ली है। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि हमारे विभाग ने अपना काम कर दिया है और लोकनिर्माण विभाग द्वारा जल्द टेंडर आमंत्रित करके पहले स्टेडियम बनाए जाएगा इसके बाद एस्ट्रो टफ लगाया जाएगा।
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गुरुवार, 11 मार्च 2010

महिला क्यो नहीं हो सकती नेता प्रतिपक्ष

दुर्ग। नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर शहर कांग्रेस पूरी तरह ठंडी पडी हुई है। पिछले दिनों कांग्रेस का नेता चुनने के लिए बुलाई गई बैठक का विषय बदलकर पार्टी ने यह जाहिर कर दिया है कि वह कुछ करने की स्थिति में नहीं है। पार्षदों को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर उन्हें अलग-थलग क्यों रखा गया है और नेता प्रतिपक्ष का चयन क्यों नहीं किया जा रहा है?
नगर निगम चुनाव के नतीजे आए 2 महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है और इस दौरान भाजपा का जहां महापौर बना, वहीं नगर निगम में भाजपा पार्षदों का बहुमत भी आया। भाजपा ने महापौर परिषद का गठन भी कर लिया और परिषद के सभी विभाग अपने-अपने काम में लग गए हैं। किन्तु इन कामों की मानिटरिंग करने के लिए कांग्रेस अब तक नेता प्रतिपक्ष नहीं बना पाई है। शहर में पानी का गम्भीर संकट है। जगह-जगह गंदगी और कचरे का जमाव है, लोगों के नगर निगम से संबधित छोटे-छोटे काम भी नहीं हो पा रहे हैं। बावजूद इसके शहर कांग्रेस के नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। शहर कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण वोरा लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं और इसीलिए उन्हें हर कोई गद्दार नजर आता है। पार्टी के लोगों का मानना है कि वोरा, किसी को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते। वर्तमान में पूर्व महापौर रघुनाथ वर्मा के अलावा धाकड़ माने जाने वाले पार्षद देवकुमार जंघेल, अलताफ अहमद और सजय कोहले नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में हैं। जबकि महिलाओं में रागिनीदेवी सोनी, सोनम नारायणी और कन्या ढीमर के नाम सामने आ रहे हैं।
एक ओर जहां कांग्रेस महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाने को अपनी उपलब्धि बता रही है तो दूसरी ओर उसे महिलाओं को सामने लाने से गुरेज है। सवाल है कि आखिर नेता प्रतिपक्ष के पद पर कोई महिला क्यों नहीं बैठ सकती? कांग्रेस के जानकार सूत्रों की मानें तो शहर कांग्रेस पर कब्जा जमाए रखने के लिए अरूण वोरा नित नए खेल खेल रहे हैं। संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया जारी है और इस हेतु पर्यवेक्षक भी भेजे गए हैं। बावजूद इसके अरूण वोरा ने अपने स्थानीय समर्थकों को पर्यवेक्षक बना दिया है। जबकि संगठनात्मक चुनाव उन्हीं पर्यवेक्षकों द्वारा सम्पन्न कराए जाने हैं, जिसको शीर्ष स्तर से भेजा गया है। कांग्रेसियों का आरोप है कि अरूण वोरा अपने पिता की वजह से लगातार मनमानी कर रहे हैं। उनकी मनमानियों का ही नतीजा है कि पार्टी लगातार हाशिए पर जा रही है।
एक कांग्रेस पार्षद के मुताबिक, जब सभी पार्षदों ने मिलजुलकर अरूण वोरा को नेता प्रतिपक्ष चुनने के लिए अधिकृत कर दिया है तो फिर वे पार्षदों से अलग-अलग बात करने जैसी बातें कहकर नौटंकी क्यों कर रहे हैं? इस पार्षद के मुताबिक, सबको मालूम है कि जो भी निर्णय लेना है, वोरा को ही लेना है। बावजूद इसके वे राजनीति के खेल दिखा रहे हैं। शहर कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक, अरूण वोरा अब तक खुद कुछ नहीं कर पाए। युवक कांग्रेस का अध्यक्ष रहते उन्होंने कुछ नहीं किया। विधायक बने तब भी कुछ नहीं कर पाए। लगातार चुनाव हारे फिर भी युवा आयोग के अध्यक्ष बना दिए गए। लालबत्ती मिली तब भी वे अपना दायरा नहीं बढ़ा पाए और अब शहर कांग्रेस के अध्यक्ष बन बैठे हैं और निर्वाचित पार्षदों से लेकर संगठन से जुड़े लोगों को निराश कर रहे हैं।

पर्यटन विभाग भी कमाई के मूड़ में

रायपुर। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर छत्तीसगढ़ में भले ही पर्यटन विभाग कुछ कर नहीं पा रहा हो और इस मद के अरबों रूपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हों, किन्तु लगता है अब यह विभाग भी कमाई के मूड़ में आ गया है। उसने अपने होटलों, मोटल और रेस्ट हाउस को निजी हाथों में सौंपने का मन बना लिया है। सब कुछ ठीक रहा तो इस महीने के अंत तक पर्यटन मंडल के 33 होटल, मोटल व रेस्ट हाउस ठेके की भेंट चढ़ जाएंगे।
नैसर्गिक सौदर्य के लिहाज से छत्तीसगढ़ अद्वितीय है, लेकिन राज्य का पर्यटन विभाग इस सौंदर्य का देश और दुनिया को रसपान कराने में सफल नहीं हो पा रहा है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक पूरे राज्य में प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है, लेकिन सरकार के पास इसके लिए कोई योजना नहीं है। राज्य के अभ्यारण्य लावारिसों की तरह हैं, यहां जंगली जानवर लगातार कम हो रहे हैं। वन्य पर्यटन के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। वन्य पशुओं का अवैध रूप से हो रहा शिकार तो सरकार रोक नहीं पा रही है, बल्कि जंगलों के सफाए की ओर भी उसका ध्यान नहीं है। खनिज सम्पदा का दोहन और जंगलों का सफाया हो रहा है, जिसके भयावह नतीजे भी सामने आ रहे हैं। हथियों का कहर बरपाना, वन्य जीवों का गांवों और शहरों की ओर पलायन जैसे कारणों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन छत्तीसगढ़ का पूरा पर्यटन चौपट होने की कगार पर है। लेकिन बजाए इस ओर ध्यान देने के, सरकार और पर्यटन मंडल रूपए कमाने के तरीके निकाल रहा है। यह साबित करने की कुचेष्टा की जा रही है कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बनाए गए होटल, और मोटल सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हो रहे है। यही वजह है कि होटल-मोटल व रेस्टहाउसों को ठेके पर देने की तैयारी की जा रही है। करोड़ों रुपए खर्च कर बनाए गए सरकारी होटल, मोटल और रेस्ट हाउस अब निजी हाथों में जा रहे है। इसके लिए बाकायदा योजना बना ली गई है। जिसकी पहली प्रक्रिया 12 मार्च को शुरू होगी और 27 मार्च तक पर्यटन मंडल की 33 होटल, मोटल व रेस्ट हाउस को ठेके पर सौंप दिया जाएगा।
छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल ने मैनेजमेंट कांट्रेक्ट बेस में पहले चरण पर प्री-बिड कांफ्रेंस 15 मार्च को दोपहर तीन बजे मुख्यालय में आयोजित की गई है। इच्छुक लोगों को फार्म भी जारी कर दिया गया है। फार्म 12 मार्च को शाम पांच बजे तक जमा करने की ताकीद भी की गई है। दूसरे चरण यानी की फाइनेंशियल बिड 27 मार्च को शाम पांच बजे खोली जाएगी। यह सारी प्रक्रिया दुरस्तगी से की गई है पर फार्म की उपलब्धता सीमित हाथों में ही है।
नवनिर्मित और आशीशान होटल मोटल के कुल 12 समूह तैयार किए गए हैं। जिसमें कुल मिलाकर 33 स्थानों की होटल, रेस्ट हाउस व मोटल हैं। इसमें रायपुर ग्रुप की टूरिस्ट मोटल केंद्री, टूरिस्ट मोटल भाटागांव रेस्ट हाउस भाठागांव, कांकेर ग्रुप की नथिया नवागांव मोटल, टूरिस्ट मोटल कांकेर, टूरिस्ट मोटल कोंडागांव जगदलपुर की टूरिस्ट मोटल आसाना, टूरिस्ट मोटल तीरथगढ़, टूरिस्ट मोटल हाराम दंतेवाड़ा, मोटल खपरी दुर्ग, मोटल तुमड़ीबोड़ राजनांदगांव, तांदुला रेस्ट हाउस दुर्ग, कवर्धा मोटल, भोरमदेव रेस्ट हाउस कबीरधाम, मोटल कांपा महासमुंद, लखोली रेस्ट हाउस रायपुर, बालार अर्जुनी रेस्ट हाउस रायपुर, टूरिस्ट मोटल रायगढ़, कुनकुरी रेस्ट हाउस रायगढ़, खुमार पाकुट रेस्ट हाउस रायगढ़ मोटल सारागांव बिलासपुर, धरमपुरा रेस्ट हाउस बिलासपुर, गोंडख़ाम्ही रेस्ट हाउस बिलासपुर, खूंटाघाट रेस्ट हाउस बिलासपुर, खुडिय़ा रेस्ट हाउस बिलासपुर, टूरिस्ट मोटल जांजगीर-चांपा, मोटल छादिराम अंबिकापुर सरगुजा, मोटल चिरगुड़ा कोरिया, श्याम घुनघुट्टा रेस्ट हाउस अंबिकापुर, टूरिस्ट मोटल कोनकोना कोरबा, माचाडोली रेस्ट हाउस कोरबा टूरिस्ट मोटल राजिम, रेस्ट हाउस कुकदा गरियाबंद को ठेके पर दिया जाना है।

महिला आरक्षण विधेयक के बाद सम्पत्ति की घोषणा डाके पर डाका

रायपुर। महिला विधेयक से पहले से ही चिंतित छत्तीसगढ़ के मंत्रियों, विधायकों को अब एक नई चिंता सताने लगी है। यह चिंता सम्पत्ति की घोषणा को लेकर है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ ही भाजपा विधायकों की सम्पत्ति हर साल उजागर करने का ऐलान किया है और इसके सुर में सुर मिलाया है कांग्रेस ने। लेकिन भाजपा और कांग्रेस के विधायकों के माथे पर इस घोषणा से चिंता की रेखाएं खिंच आई है। इधर, आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों की सम्पत्तियों का ब्यौरा इंटरनेट पर जारी करने की सरकार की घोषणा से अफसरों के होश उड़े हुए हैं।
एक सामान्य कार्यकर्ता से नेता बनने और उसके बाद पार्टी का टिकट हासिल कर चुनाव लड़ऩे, लाखों रूपए खर्च करने के बाद चुनाव जीतने वाले नेता सम्पत्ति का ब्यौरा देने के थोपे गए निर्णय से काफी चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह की घोषणाओं से कुछ होने वाला नहीं है। एक विधायक के मुताबिक, इस घोषणा के चलते कुछ तकनीकी दिक्कतें पेश आ सकती है। यह दिक्कतें ऐसी हैं, जिनका कोई जवाब विधायक या मंत्री के पास नहीं होता। एक संसदीय सचिव की मानें तो पद पर आते ही आवक का पता नहीं चल पाता। किसी का कोई काम करवा दिया या डूबते हुए को पार लगा देने से ही काफी आवक हो जाती है। यह काम करवाने के ऐवज में लिया गया पारिश्रमिक होता है। फिर शासकीय कार्यों की कमीशन का कोई क्या हिसाब दे सकता है?
छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद हालात पूरी तरह बदलने वाले हैं। यदि विधेयक पारित हो जाता है, (जो कि लगभग तय है) तो राज्य में कुल 30 महिलाएं विधायक होंगी। इतना ही नहीं, छत्तीसगढ़ की लोकसभा की 11 में से 4 सीटें महिलाओं के खाते में जा रही हैं। यह ऐसा मसला है, जिसे मंत्री, विधायक, नेता कोई पचा नहीं पा रहे हैं। इन नेताओं का लगता है कि यह उनके अधिकार पर डाके की तरह है। हालांकि पार्टी की नीतियों के तहत फिलहाल उन्होंने चुप्पी साध रखी है। अपना क्षेत्र आरक्षण की चपेट में आने की स्थिति के मद्देनजर वे अपनी पत्नी, पुत्री या रिश्तेदार के नाम पर विचार कर रही रहे थे कि अब उन पर एक और ऑफत थोप दी गई। दरअसल, विधानसभा में सरकार को घेरने से लिहाज से कांग्रेस विधायक धर्मजीत सिंह ने एक अफसर के पास मिली 400 करोड़ से अधिक की सम्पत्ति पर सवाल उठाया था। जिसके जवाब में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने न केवल अफसरों बल्कि मंत्रियों और विधायकों की सम्पत्ति सार्वजनिक करने की वकालत की। उन्होंने इस दौरान यहां तक कह दिया कि सार्वजनिक जीवन में सुचिता और ईमानदारी के लिए जरूरी है कि जनता को उनके बारे में तमाम जानकारी हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि मंत्री और विधायक अपनी-अपनी सम्पत्तियों का ब्यौरा दें। उन्होंने अपनी ओर से अपने समेत मंत्रियों और भाजपा के विधायकों की सम्पत्तियों का ब्यौरा हर साल देने का ऐलान किया। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने इसका स्वागत किया और हर साल बजट सत्र में कांग्रेस विधायकों द्वारा सम्पत्ति का ब्यौरा देने की बात कही।
मुख्यमंत्री के मुताबिक. यदि अफसरों की सम्पत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर उपलब्ध होगा तो लोगों को सूचना कानून के तहत बार-बार जानकारियां मांगने की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने स्वीकार किया कि 31 जनवरी तक सम्पत्ति की घोषणा का स्पष्ट नियम होने के बावजूद कई अफसरों ने अपनी सम्पत्ति की जानकारी नही दी है। इनमें 2 आईएएस, 18 आईपीएस और 69 भारतीय वन सेना के अधिकारी हैं।