शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

नहीं फूटे संवेदना के दो बोल

- नरेश सोनी -

यह कांग्रेस किस दिशा में जा रही है? नक्सलियों के खिलाफ संयुक्त अभियान कब का शुरू हो चुका है और इस दौरान बस्तर के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने अब तक का सबसे बड़ा हमला कर 76 लोगों को मौत की नींद सुला लिया, किन्तु कांग्रेस के किसी बड़े नेता के मुंह से संवेदना के दो बोल नहीं फूटे। क्या कांग्रेस नक्सलियों की समर्थक है? जिन आदिवासियों से मिलने के लिए राहुल गांधी खासतौर पर बस्तर पहुंचे थे, उन आदिवासियों का पूरा का पूरा वजूद खतरे में है, लेकिन कलावती की गरीबी का रोना रोने वाले कांग्रेस के इस युवराज का मुंह नक्सलियों के खिलाफ तो नहीं ही खुला, हिंसा का शिकार हुए जवानों के लिए भी बंद रहा। शायद यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस पर हमला बोल रही है।
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का बयान इन दिनों सुर्खियों में है। इस बयान में सिंह ने खुलेआम गृहमंत्री पी. चिदंबरम की नक्सल नीति का विरोध किया है और इसकी समीक्षा की वकालत की है। चतुराई भरी राजनीति करने में माहिर दिग्विजय सिंह अपने बयान में चिदम्बरम को विद्वान, प्रतिबद्ध, गम्भीर नेता और अपना पुराना मित्र बताने से भी नहीं चूके। जिस वक्त छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश का अंग था, दिग्विजय मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उनके 10 वर्षीय शासनकाल के दौरान नक्सलियों को फलने-फूलने का खूब अवसर मिला। यही वह वक्त था, जब नक्सलियों ने अपनी जड़ें गहरी की और बस्तर के बीहड़ों में समानांतर सरकार चलाने लगे। पृथक राज्य बनने के बाद अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने और उनके तीन वर्षीय शासनकाल में भी नक्सलियों के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं की गई। जोगी तो नक्सलियों को भटके हुए लोग बताते रहे हैं। उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ चलने वाले सलवा जुड़ूम की भी खुलकर आलोचना की। एक ओर जहां तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा सलवा जुड़ूम का नेतृत्व कर रहे थे तो दूसरी ओर जोगी इस अभियान की खिलाफत कर रहे थे। इस मामले में कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं ने भी कभी किसी तरह की टिप्पणी नहीं की। हद तो तब हो गई जब दंतेवाड़ा हादसे के वक्त कोंडागांव में ही मौजूद रहे वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा और वी. नारायण सामी ने संवेदना के दो शब्द कहना भी जरूरी नहीं समझा।
छत्तीसगढ़ में हुए अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले के बाद प्रदेश कांग्रेस ने रमन सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी। लेकिन केन्द्र सरकार ने इस मांग को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि नक्सल विरोधी संयुक्त अभियान क्योंकि केन्द्र सरकार की ही पहल पर चल रहा है इसलिए ऐसी मांगों का कोई औचित्य नहीं है। जवानों के नृशंस हत्याकांड के मसले पर सशक्त जनमत तैयार करने की मानसिकता बना रही प्रदेश कांग्रेस को इससे जोर का झटका लगा। बावजूद इसके उसने प्रदेश स्तर पर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई। इसके तहत आंदोलन का बिगूल भी फूंक दिया गया। प्रदेश कांग्रेस की मंशा पूरे राज्य में जबरदस्त आंदोलन करने की थी, लेकिन एक बार फिर उसे ठंडा कर दिया गया है। कांग्रेस हाईकमान का रूख इस पूरे मामले में प्रदेश की भाजपाई सरकार के पक्ष में नजर आता है। यह बात छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी हजम नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें यकीन नहीं हो पा रहा है कि उनकी अपनी केन्द्र सरकार आखिर प्रदेश की भाजपाई सरकार को बचा क्यों रही है, जबकि वर्तमान में राष्ट्रपति शासन के लिए माहौल बेहद अनुकूल हैं।
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सोमवार, 12 अप्रैल 2010

सरकार को कौन बर्खास्त करे

- नरेश सोनी -


छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस ने सोमवार से राज्य की डॉ. रमन सिंह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इससे पहले उसने अपनी ही पार्टी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार से मांग की थी कि इस सरकार को बर्खास्त कर दिया जाए। हालांकि केन्द्र सरकार ने इस मांग को सिरे से इस आधार पर खारिज कर दिया था कि नक्सल विरोधी अभियान केन्द्र की अगुवाई में ही चल रहा है। बावजूद इसके यदि कांग्रेस ने प्रदेश सरकार को बर्खास्त करने और जनमत तैयार करने के उद्देश्य से अभियान शुरू कर दिया है तो इसे सीधे-सीधे पार्टी हाईकमान के खिलाफ खोला गया मोर्चा कहना अतिशंयोक्तिपूर्ण नहीं होगा।

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष धनेन्द्र साहू समेत कई कांग्रेसियों ने प्रदेश की डॉ. रमन सिंह सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी। इन कांग्रेसियों का तर्क था कि प्रदेश सरकार लोगों के जान-माल की रक्षा करने में समर्थ नहीं है और यहां कानून व्यवस्था की स्थिति भी ठीक नहीं है। इस आधार पर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए। लेकिन प्रदेश के कांग्रेसियों की इस मांग को पहले केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने और उसके बाद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी ठुकरा दिया। उनका कहना था कि 76 जवानों की नक्सलियों द्वारा की गई नृशंस हत्या के बाद यह मांग इसलिए भी जायज नहीं है कि क्योंकि नक्सलियों के खिलाफ केन्द्र सरकार की ही पहल पर संयुक्त अभियान शुरू हुआ है। दिल्ली से आए इस बयान के बाद प्रदेश अध्यक्ष साहू ने प्रदेशव्यापी अभियान चलाने की बात कही थी। इसी के तहत कांग्रेस का सरकार विरोधी अभियान शुरू हो गया।

दरअसल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जो बुरी हालत हुई है, उससे पीछा छुड़ाना लगातार भारी पड़ता रहा है। लचर संगठन और नाक के ऊपर चढ़ आया गुटबाजी का पानी, पार्टी को डुबाने को आतुर है। राज्य के दिग्गज कांग्रेसी मोतीलाल वोरा, दिल्ली की राजनीति में इतने रम गए हैं कि उन्होंने छत्तीसगढ़ से ही किनारा कर लिया। ऐसे में अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हालात इस कदर बिगड़े कि अब तक नहीं सुधर पाए हैं। तब से लेकर अब तक दो बार विधानसभा और इतनी ही बार लोकसभा के चुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस का परफारमेंस बेहद निराशाजनक रहा। हद तो कुछ महीनों पहले सम्पन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में हो गई, जहां शहरियों की पार्टी कहलाने वाली भाजपा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को पीछे ढकेल दिया। वास्तव में, प्रदेश कांग्रेस के साथ एक विडंबना है कि उसके अध्यक्ष तो लगातार बदलते रहे, लेकिन इन अध्यक्षों को मनमाफिक कार्यकारिणी बनाने की छूट नहीं दी गई। प्रदेश कांग्रेस में अब भी बरसों पुरानी कार्यकारिणी काम कर रही है। अब जबकि संगठन चुनाव की गतिविधियां चल रही है, इस बात की संभावना मजबूत हुई है कि संगठनात्मक चुनाव के बाद पार्टी का कुछ भला हो पाएगा, लेकिन यह तब होगा, जब एनएसयूआई या वर्तमान में युवक कांग्रेस की तरह गुटबाजी न हो। फिलहाल, संगठन पर कब्जे के लिए जिस तरह की पैतरेबाजी चल रही है, वह भी कम नुकसानदायक नहीं होगी।