शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

सैन्य कार्यवाही से परहेज़ क्यों?

- नरेश सोनी -

बस्तर में कत्लेआम के बाद भी केन्द्र सरकार नक्सलियों के खिलाफ सैन्य कार्यवाही से परहेज कर रही है, जबकि वहां तैनात जवानों को यह भलीभांति मालूम है कि नक्सलियों के ठिकाने कहां है। यदि इन ठिकानों को नेस्तनाबूत करने वायुसेना की मदद ली जाए तो जाहिर तौर पर न केवल नक्सलियों का सफाया होगा, बल्कि उन करोड़ों रूपयों की बचत भी हो पाएगी, जो जवानों और आपरेशन को अंजाम देने के लिए व्यय किए जा रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम इस अभियान को तीन साल चलाने के मूड़ में लगते हैं, जब नक्सलियों का सफाया इससे पहले हो सकता है तो फिर लम्बा-चौड़ा खर्च करने और जवानों की जान जोखिम में डालने की जरूरत क्या है? वास्तव में केन्द्र और राज्य की सरकारों में नक्सलियों के सफाए का माद्दा नजर नहीं आ रहा है। सवाल यह है कि जब बिना जवानों की जान गँवाए नक्सलियों का वायुसेना की मदद से ही सफाया हो सकता है तो फिर विलम्ब और इंतजार किसलिए?

दरअसल, विश्व बिरादरी में अपनी साख के फेर में केन्द्र की सरकार देश के भीतर सैन्य कार्यवाही से बचती रही है। जम्मू-कश्मीर में पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने जो गलतियां की थी, वही गलतियां अब डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार करने जा रही है। लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि हजारों लोगों को मौत से बचाना और अरबों रूपयों के संभावित व्यय से बचना ज्यादा जरूरी है या फिर विदेशों में अपनी साख? पं. नेहरू की गलतियों का खामियाजा आज भी जम्मू कश्मीर की अवाम भुगत रही है और अब तक कश्मीर में भारत का सम्पूर्ण शासन स्थापित नहीं हो पाया है। वहां अब भी सैन्य कार्यवाही नहीं की जा रही है। नक्सली जिस तरह से एक बड़े इलाके पर काबिज हो गए हैं, उससे यही लगने लगा है कि कहीं यहां भी वैसे ही हालत निर्मित न हो जाए। बस्तर के भीतरी इलाके आज भी सरकार की पहुंच से दूर है और वहां नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती है। वन माफियाओं से लेकर, ट्रांसपोर्टरों, व्यवसायियों और कथित तौर पर नेताओं तक से नक्सली चंदा वसूलते हैं। खबर यह भी है कि नक्सली गांजा आदि की खेती भी करवा रहे हैं। इस पर अंकुश लगाना सरकार के बस में नहीं दिख रहा है, जबकि इसी चंदे आदि की बदौलत नक्सली हथियार और गोलाबारूद खरीद रहे हैं और कत्लेआम कर रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ अभियान शुरू होने से पहले जवानों को तमाम तरह के प्रशिक्षण दिए गए हैं। गोरिल्ला युद्ध से लेकर जंगलवार तक से प्रशिक्षित होने के बाद भी जवानों की जान ऑफत में है। ऐसे में बस्तर समेत उन तमाम राज्यों में सैन्य कार्यवाही जरूरी हो जाती है, जो नक्सलियों से बुरी तरह त्रस्त हैं।

भले ही बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चल रहा अभियान राज्य की भाजपा और केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार का संयुक्त आपरेशन है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में जो कुछ निकलकर सामने आता रहा है, वह यह है कि भाजपा इस कोशिश में लगी है कि उसका वोटबैंक प्रभावित न हो तो कांग्रेस एक बार फिर अपने वोटबैंक को सुरक्षित करने की जुगत में है। और वोटबैंक-वोटबैंक के इस खेल में आतंक का पर्याय बन बैठे नक्सलियों का शिकार हो रहे हैं वे जवान, जिन्हें बिना किसी ठोस योजना के मौत के मुंह में झोंक दिया गया है। अद्र्धसैनिक बलों के साथ ही पुलिस और एसपीओ के जवान जब लगातार मर रहे हैं और नक्सलियों पर नकेल कसने में कोई सफलता नहीं मिल पा रही है तो केन्द्र और राज्य की सरकारें ठोस निर्णय क्यों नहीं ले पा रहे हैं? सेना के उपयोग पर केन्द्र सरकार को आपत्ति क्यों है और क्यों हवाई हमले नहीं हो सकते, जबकि नक्सलियों के ठिकानों की ठीक-ठीक जानकारियां जुटा ली गई है? केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम कह गए हैं कि छत्तीसगढ़ में ग्रीनहंट नाम का कोई आपरेशन नहीं चल रहा है। जबकि राज्य के तमाम आला पुलिस अफसर बार-बार आपरेशन ग्रीनहंट की बातें करते रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर बस्तर में चल क्या रहा है? क्यों नहीं नक्सलियों के खिलाफ आरपार की लडाई छेड़ी जाती? हमले में घायल हुए जवानों के मुताबिक, नक्सलियों के कैंप के बारे में तमाम अफसरों के पूरी जानकारी है। किस जगह कितनी संख्या में नक्सलियों का जमावड़ा है और उनके पास कौन-कौन से हथियार है, जब इसकी जानकारियां हैं तो बड़े कदम उठाने में परहेज क्यों किया जाता है? नक्सलियों के ठिकानों पर हवाई हमले होने से जवानों को अकारण जान भी नहीं गंवानी पड़ेगी। इससे वक्त की बर्बादी भी बचेगी और जवानों पर खर्च होने वाला रूपया भी।

प्रत्येक नक्सली घटना का जिम्मा खुफिया तंत्र और रणनीतिक चूक पर मढ़ दिया जाता है। आखिर यह क्यों नहीं देखा जाता कि जंगलों में नक्सलियों का राज है और वहां जंगल का ही कानून चलता है कि जो हमारे साथ नहीं है, व हमारा दुश्मन है। अपने बेहतर नेटवर्क के जरिए नक्सली पुलिस के मुखबिरों को चुन-चुन और सरेआम मारते हैं। ऐसे में कहां का खुफिया तंत्र और कैसे मुखबिर?

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मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

सबसे बड़ा हमला, 70 जवान शहीद


देश के इतिहास का सबसे बड़ा हमला करते हुए नक्सलियों ने आज छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में 70 से ज्यादा जवानों को मौत की नींद दिया। मृतकों में सीआरपीएफ का 1 डिप्टी कमांडेंट भी शामिल है। हमले में 20 से ज्यादा जवानों के गम्भीर रूप से घायल होने की खबर है। जबकि वारदात के बाद से करीब 50 जवान लापता बताए जा रहे हैं। फिलहाल दंतेवाड़ा जिले के 6 अलग-अलग ठिकानों पर सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ जारी है। नक्सली हमले की रक्षामंत्री पी. चिदम्बरम और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने निंदा की है। नक्सल इतिहास की इस सबसे बड़ी वारदात के पश्चात आज ही राजधानी रायपुर में आपात बैठक बुलाई गई। इस बैठक में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, सीआरपीएफ के प्रतिनिधि और प्रदेश के आला पुलिस अफसरों के साथ ही गृह सचिव, डीजीपी, और मुख्य सचिव शामिल हुए।
सूत्रों के अनुसार आज सुबह चिंतागुफा थाने से पुलिस का संयुक्त बल सर्र्चिंग के लिए चिंतलनार की ओर रवाना हुआ था। ग्राम ताड़मेटला के समीप जंगल में घात लगाए बैठे नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया। सूत्रों के अनुसार नक्सली का यह हमला पूरी तरह सुविचारित और योजनाबद्ध था। पुलिस पार्टी कल शाम सर्चिग के लिए रवाना हुई थी जिसे आज सुबह लौटना था। इसीलिए नक्सलियों ने उन पर हमले की पूरी तैयारी कर रखी थी। नक्सली शहीद जवानों के हथियार भी लूटकर ले गए। बताया जाता है कि चिंतननार के ताड़केटला में नक्सलियों ने पहले घात लगाकर हमला किया। इस हमले में घायल हुए जवानों को लेने जब सीआरपीएफ के जवान एंटी लैंडमाइन व्हीकल से ताड़केटला जा रहे थे, इसी दौरान नक्सलियों ने दूसरा हमला बोलते हुए एंटी लैंडमाइन वाहन को उड़ा दिया। बताया जाता है कि मुठभेड़ में नक्सलियों से जूझ रहे बल को मदद देने चिंतलनार से अतिरिक्त पुलिस बल एंटी माईंस व्हीकल से रवाना किया गया था। यह बल लगभग दो किलोमीटर दूर आगे बढ़ा ही था कि नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर दिया। विस्फोट में बुलेट पू्रफ वाहन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है। इस विस्फोट में चालक सहित एक जवान शहीद हो गए। इस बीच दोरनापाल से भी मुठभेड़ स्थल की ओर पुलिस बल रवाना हुआ था, जिस पर घाटी के पास नक्सलियों ने हमला कर दिया। बताया जाता है कि वारदात को अंजाम देने के लिए करीब 1000 नक्सली पहले से ही तैयार बैठे थे। सभी मृतक और घायल जवान 62वीं बटालियन के जवान हैं। घायलों को लाने के लिए जगदलपुर से हेलीकाप्टर रवाना किया, जिसके पश्चात बारी-बारी से घायल जवानों को चिंतलनार लाया गया। यहां से घायलों की स्थिति को देखते हुए उन्हें जगदलपुर और रायपुर के अस्पताल रवाना किया गया।
यहां यह उल्लेख करना लाजिमी होगा कि लगभग तीन वर्ष पूर्व बीजापुर जिले के रानीबोदली में नक्सलियों ने मध्य रात्रि में पुलिस कैम्प पर धावा बोलकर 55 जवानों को मौत की नींद सुला दिया था। इधर, गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने आज दिल्ली मे घटना की निंदा की। उन्होंने मृतकों की संख्या और बढऩे की आशंका भी जताई। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सली हमले की निंदा करते हुए घटना को दुखद बताया। उन्होंने कहा कि यह नक्सल हिंसा की पराकाष्ठा है। नक्सलियों ने हिंसा और अराजकता की सारी सीमाएं पार कर ली है। आज की वारदात से नक्सलियों का असली चेहरा बेनकाब हुआ है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने भी घटना की पुरजोर निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह वक्त आलोचना करने का नहीं है। जवानों ने पूरा शौर्य दिखाया है। श्री चौबे ने कहा कि बिना किसी योजना के जवानों को बीहड़ों में नहीं भेजा जाना चाहिए।

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

मतलब छत्तीसगढ़ में कुपोषण भी है...

- नरेश सोनी -

छत्तीसगढ़ में कुपोषण को खत्म करने के लिए अमेरिका इस राज्य की मदद करने जा रहा है। यह खबर उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी इस खबर के पीछे के सवाल अहम् हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या छत्तीसगढ़ में कुपोषण भी है? योजना आयोग के उपाध्यक्ष डीएन तिवारी की मानें तो छत्तीसगढ़ में कुपोषण दर 52 फीसदी है।
केन्द्रीय योजना के तहत प्रदेश की सरकार आंगनबाडिय़ों के जरिए अरसे से पूरक पोषण आहार उपलब्ध करा रही है। इस योजना का उद्देश्य ही ऐसा आहार उपलब्ध कराना है, जिससे कुपोषण जैसी समस्या खत्म हो। प्रत्येक शहर के प्रत्येक वार्ड में एक आंगनबाड़ी केन्द्र की स्थापना की गई है, जहां न केवल बच्चों बल्कि गर्भवती महिलाओं को भी पूरक आहार मुहैय्या कराया जाता है। इसके अलावा स्कूलों में बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिल रहा है। सरकार की 5 रूपए वाली दाल-भात योजना अभी भी चल रही है और इन सबसे बढ़कर 1 और 2 रूपए वाली चावल योजना को भाजपा की सरकार ने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में शुमार किया है। दुनिया का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो दिनभर में एक रूपए नहीं कमा सकता। और इस सिर्फ एक रूपए और मुफ्त नमक की बदौलत एक परिवार भरपेट भोजन कर सकता है।
बावजूद इन सबके क्या छत्तीसगढ़ में कुपोषण जैसी समस्या भी सामने आ सकती है? ... और यदि आ रही है तो फिर अरबों रूपयों की इन सरकारी योजनाओं के मायने क्या है? खबर है कि छत्तीसगढ़ में कुपोषण के खात्मे के लिए अमेरिका, प्रदेश सरकार की मदद करने जा रहा है। एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट की एक टीम ने राज्य के आला अफसरों के साथ हुई एक बैठक में यह वायदा किया है। गौरतलब है कि अमेरिका की एक टीम डॉ. राजीव टंडन की अगुवाई में इन दिनों छत्तीसगढ़ के दौरे पर है। इस टीम ने मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेद से मुलाकात की। बाद में इस टीम ने योजना आयोग, महिला एवं बाल विकास विभाग समेत अन्य विभागों के सचिवों के साथ भी बैठक की। अमेरिकी प्रतिनिधियों को प्रेजेंटेशन के जरिए प्रदेश में कुपोषण से 52 फीसदी प्रभावी होने और उससे निपटने चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी दी गई। इन जानकारियों में जो बातें बताई गई वह यह थी कि 11 से 18 साल वाले बच्चे भी कुपोषित हैं। मातृ मृत्यु दर 300 और शिशु मृत्यु दर भी अधिक है। टीम ने राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। उसने इसमें परिवर्तन और सुधार का भी सुझाव दिया, साथ ही कुपोषण के खात्मे के लिए एक्शन प्लान मांगा।
अब सवाल यह है कि जब आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए करोड़ों रूपए खर्च कर पूरक और पोषण आहार मुहैय्या कराया जाता है तो बच्चे कुपोषण का शिकार क्यों हो रहे हैं? और मातृ और शिशु मृत्यु दर अधिक क्यों है? क्या इसका मतलब यह है कि शासन की सारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है और आम जन को उसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है? या फिर विदेशों से मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए जानबूझकर ऐसी बातें कही जा रही है?

ख़ता की, जो सच कह बैठे

- नरेश सोनी -

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर जिले में एक ऐसी घटना घट गई, जो सरकार के लिहाज से कतई उचित नहीं थी। हुआ यह कि यहां के जिला पंचायत प्रभारी सीईओ (आईएएस) एपी मेनन ने जिला पंचायत के पहले सम्मेलन में सरकार की जमकर आलोचना की। उनका कहना था कि प्रदेश की डॉ. रमन सिंह सरकार के पास विकास की कोई योजना है, न स्पष्ट नीति। यह सरकार महज सस्ता चावल बांटकर क्षेत्र का विकास करना चाहती है। यदि सरकार को गरीबों को चावल ही देना है तो अरवा या उसना की बजाए बासमती दे। मेनन ने सरकार की नक्सल उन्मूलन नीति पर भी कई सवाल उठाए।
जाहिर है कि जो लोग आइना देखने से बचते रहे हैं, उन्हें एक अफसर का इस तरह की कटु टिप्पणियां करना पसंद नहीं आया। नतीजतन मेनन को पद से हटा दिया गया। उनकी जगह पी. प्रकाश को बीजापुर जिला पंचायत का नया सीईओ बनाया गया है। अब बात मेनन द्वारा दिखाए गए आइने की - प्रदेश की सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र के अनुरूप प्रत्येक गरीब परिवार को एक और दो रूपए किलो चावल मुहैय्या करा रही है। प्रारंभिक तौर पर देखने पर तो यह योजना क्रांतिकारी लगती है, किन्तु इसके दुष्प्रभाव अब नजर आने लगे हैं। केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना का भट्ठा बैठ चुका है। इस योजना के लिए प्रशासन को मजदूर सिर्फ इसलिए नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि मजदूरों को महीने में महज 30 रूपए खर्च कर भरपेट भोजन मिल जा रहा है। नमक तो खैर मुफ्त में मिल ही रहा है। अब जिनको इस दर पर अनाज मिल रहा हो, वह मेहनत क्यूंकर करेगा? ...सीधे-सीधे सरकार की सस्ता चावल बांटने वाली योजना ने गरीब, मजदूरों को अलाल और कामचोर बनाकर रख दिया है। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए यह सबसे बड़ी खतरे की घंटी है कि उसका मानव श्रम घरों में दुबका रहकर जनसंख्या बढ़ाने का काम करे, और अपनी हड्डियों में जंग लगवा बैठे। यदि कल यह सरकार नहीं रही और अगली सरकार ने चावल योजना को बंद कर दिया या सीमित कर दिया तो अलाल और कामचोर बन चुके लोगों और उनके परिवार का क्या होगा?
वास्तव में सस्ते चावल जैसी योजनाएं चलाने की बजाए सरकार को स्वरोजगार या रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम चलाना था। (सरकार यह तर्क दे सकती है कि वह ऐसा कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।) इस तरह के कार्यक्रमों में लागत भी कम आती और लोगों को आजीविका का स्थाई साधन भी मिल पाता। इस लिहाज से देखें तो आईएएस एलेक्स पाल मेनन की बातों में भविष्य की चिंता झलकती है। भले ही उनकी साफगोई को सरकार विरोधी बताया जा रहा हो, लेकिन ऐसे अफसर सम्मान के पात्र होते हैं। दरअसल, मेनन के बयान की जब मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुंची तो प्रदेश के मुखिया ने मुख्य सचिव जॉय उम्मेद को तलब तक मेनन को तत्काल हटाने का आदेश दिया। इसी आदेश के तहत मेनन को बीजापुर जिला पंचायत से चलता किया गया। बीजापुर को अलग राजस्व जिला बनाए जाने के बाद यहां पहली बार जिला पंचायत का गठन हुआ है।

उसना पर बवाल

अपने चुनावी घोषणा-पत्र के अनुरूप राज्य सरकार गरीबों को अब तक अरवा चावल उपलब्ध कराती रही है, किन्तु चावल की कमी के चलते उसे पड़ोसी राज्यों से उसना चावल आयात करना पड़ रहा है। आमतौर पर छत्तीसगढ़ के लोग उसना चावल नहीं खाते हैं। कई लोगों ने शिकायत भी की है कि सरकार द्वारा जबरिया दिए जा रहे उसना चावल खाने से पेट में दर्द, ऐंठन और दस्त जैसी शिकायतें सामने आ रही है। यह मामला विधानसभा में भी उठ चुका है और पूरे प्रदेश में अरवा की बजाए उसना चावल दिए जाने को लेकर सरकार की आलोचना भी हो रही है। दरअसल, उसना चावल दिए जाने की भी अपनी वजह बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि सरकार की अपेक्षाओं से विपरीत राज्य में गरीबों की संख्या अकस्मात इतनी बढ़ गई कि प्रत्येक को चावल देना संभव नहीं हो रहा था। इसीलिए उसना चावल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसका एक फायदा यह है कि उसना चावल का नाम सुनते ही लोग चावल लेने से मना कर देते हैं। दूसरा फायदा यह है कि चावल का उठाव कम होने से सरकार को होने वाला नुकसान भी कम होगा। ...और सबसे बड़ी बात इस योजना पर ज़ाया होने वाला सरकार का वक्त भी बचेगा।

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