- नरेश सोनी -
छत्तीसगढ़ में कुपोषण को खत्म करने के लिए अमेरिका इस राज्य की मदद करने जा रहा है। यह खबर उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी इस खबर के पीछे के सवाल अहम् हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या छत्तीसगढ़ में कुपोषण भी है? योजना आयोग के उपाध्यक्ष डीएन तिवारी की मानें तो छत्तीसगढ़ में कुपोषण दर 52 फीसदी है।
केन्द्रीय योजना के तहत प्रदेश की सरकार आंगनबाडिय़ों के जरिए अरसे से पूरक पोषण आहार उपलब्ध करा रही है। इस योजना का उद्देश्य ही ऐसा आहार उपलब्ध कराना है, जिससे कुपोषण जैसी समस्या खत्म हो। प्रत्येक शहर के प्रत्येक वार्ड में एक आंगनबाड़ी केन्द्र की स्थापना की गई है, जहां न केवल बच्चों बल्कि गर्भवती महिलाओं को भी पूरक आहार मुहैय्या कराया जाता है। इसके अलावा स्कूलों में बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिल रहा है। सरकार की 5 रूपए वाली दाल-भात योजना अभी भी चल रही है और इन सबसे बढ़कर 1 और 2 रूपए वाली चावल योजना को भाजपा की सरकार ने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में शुमार किया है। दुनिया का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो दिनभर में एक रूपए नहीं कमा सकता। और इस सिर्फ एक रूपए और मुफ्त नमक की बदौलत एक परिवार भरपेट भोजन कर सकता है।
बावजूद इन सबके क्या छत्तीसगढ़ में कुपोषण जैसी समस्या भी सामने आ सकती है? ... और यदि आ रही है तो फिर अरबों रूपयों की इन सरकारी योजनाओं के मायने क्या है? खबर है कि छत्तीसगढ़ में कुपोषण के खात्मे के लिए अमेरिका, प्रदेश सरकार की मदद करने जा रहा है। एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट की एक टीम ने राज्य के आला अफसरों के साथ हुई एक बैठक में यह वायदा किया है। गौरतलब है कि अमेरिका की एक टीम डॉ. राजीव टंडन की अगुवाई में इन दिनों छत्तीसगढ़ के दौरे पर है। इस टीम ने मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेद से मुलाकात की। बाद में इस टीम ने योजना आयोग, महिला एवं बाल विकास विभाग समेत अन्य विभागों के सचिवों के साथ भी बैठक की। अमेरिकी प्रतिनिधियों को प्रेजेंटेशन के जरिए प्रदेश में कुपोषण से 52 फीसदी प्रभावी होने और उससे निपटने चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी दी गई। इन जानकारियों में जो बातें बताई गई वह यह थी कि 11 से 18 साल वाले बच्चे भी कुपोषित हैं। मातृ मृत्यु दर 300 और शिशु मृत्यु दर भी अधिक है। टीम ने राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। उसने इसमें परिवर्तन और सुधार का भी सुझाव दिया, साथ ही कुपोषण के खात्मे के लिए एक्शन प्लान मांगा।
अब सवाल यह है कि जब आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए करोड़ों रूपए खर्च कर पूरक और पोषण आहार मुहैय्या कराया जाता है तो बच्चे कुपोषण का शिकार क्यों हो रहे हैं? और मातृ और शिशु मृत्यु दर अधिक क्यों है? क्या इसका मतलब यह है कि शासन की सारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है और आम जन को उसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है? या फिर विदेशों से मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए जानबूझकर ऐसी बातें कही जा रही है?
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