रायपुर। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल और छत्तीसगढ़ को लम्बे समय बाद प्रतिनिधित्व मिलने की खबरों से राज्य के आला नेताओं के कान खड़े हो गए हैं। पिछले दिनों हमने अपने इसी ब्लाग में कहा था कि यहां से खाली हो रही मोहसिना किदवई की राज्यसभा सीट पर कई लोगों की निगाहें लगी हुई है। छत्तीसगढ को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिलने के संकेत के साथ ही राज्यसभा की उम्मीद पालने वालों की संख्या और बढऩे की संभावना है। फिलहाल इस राज्यसभा सीट पर वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल की निगाहें लगी हुई हैं। उनके अलावा लोकसभा सांसद चरणदास महंत, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, पूर्व मंत्री अरविंद नेताम भी प्रमुख दावेदारों में शुमार हैं। इन नेताओं के समर्थकों को लगता है कि यदि यह सीट हाथ गई तो केन्द्रीय मंत्री का पद ज्यादा दूर नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ से खाली हो रही राज्यसभा सीट के लिए दावेदार कौन होगा, यह तो फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा की पसंद को जरूर तवज्जो मिलेगी। लम्बे समय से कांग्रेस का कोष संभालने वाले वोरा समन्वय की राजनीति पर यकीन करते हैं और इसीलिए किसी ऐसे नेता के चुने जाने की संभावना कम ही है जो गुटबाजी को प्रश्रय देता है। इसके अलावा पार्टी के प्रति निष्ठा भी प्रमुख पैमाना होगा, ऐसा जिम्मेदार नेताओ का मानना है। इधर, आदिवासी वर्ग को प्रतिनिधित्व दिए जाने की भी मांग उठने लगी है। आदिवासियों के प्रमुख गढ़ बस्तर से कांग्रेस फिलहाल पूरी तरह साफ है और यदि इस वर्ग को महत्व मिलता है तो भविष्य में पार्टी को फायदा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन दिक्कत यह है कि कांग्रेस के पास प्रभावशाली आदिवासी नेतृत्व का अभाव है। विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा और पूर्व मंत्री अरविंद नेताम का नाम उभरकर जरूर आता है, पर कर्मा विधानसभा चुनाव में हार के बाद से घर में बैठे हुए हैं। सलवा जुड़ूम अभियान चलाने और नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोले जाने को लेकर वे किसी समय खूब चर्चा में रहे, किन्तु अब उनकी गतिविधियां भी ठप्प पड़ी हुई हैं। किसी समय विश्वव्यापी सुर्खियां बटोरने वाला सलवा जुडूम अभियान अब बंद हो चुका है। नक्सलियों से बैर मोल लेने की वजह से कर्मा परिवार को कई बलिदान देने पड़े। अब भी महेन्द्र कर्मा नक्सलियों की हिटलिस्ट में हैं। दूसरी ओर अरविंद नेताम तो कई बरसों से सक्रिय नहीं हैं। विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पुत्री प्रीति नेताम को टिकट दिलवाई थी, किन्तु वे उसे जितवाकर नहीं ला पाए।
पृथक राज्य बनने के बाद से ही कांग्रेस के सत्ता और संगठन में गुटबाजी हावी रही है। जोगी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उन्होंने बाकी गुटों को जमकर पानी पिलाया। नतीजतन तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को उनके समक्ष समर्पण करना पड़ा जबकि उन्हें वोरा का खास समर्थक माना जाता था। विद्याचरण शुक्ल छिटककर दूसरे दल में चले गए तो खुद वोरा ने राज्य की राजनीति से तौबा कर ली और चुप हो गए। यह हालात लगातार कायम रहे जब तक विधानसभा के चुनाव में पार्टी को पराजय नहीं मिली। भाजपा के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के बाकी सभी गुट एकजुट हो गए और जोगी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यही स्थिति आज भी बरकरार है। हालांकि अब जोगी दम्पत्ति विधायक हैं और अपने पुत्र अमित जोगी को युवक कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनवाने प्रयासरत् हैं। लेकिन उन्हें अन्य वरिष्ठ नेताओं का समर्थन नहीं मिल पा रहा है। इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि जोगी राज्यसभा तक पहुंच पाएंगे।
मिल रही खबरों के मुताबिक, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल का खाका खींचा जा रहा है। संभावना है कि जून-जुलाई में यह काम कर लिया जाएगा। फिलहाल केन्द्रीय मंत्रिमंडल में 78 मंत्री हैं। जबकि अधिकतम 81 मंत्री बनाए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ को छोड़कर लगभग सभी राज्यों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से इकलौते चरणदास महंत ही चुनाव जीते थे। इसलिए महंत स्वाभाविक दावेदार के रूप में भी सामने आ रहे हैं। पार्टीजनों की मानें तो उनके नाम पर किसी को ऐतराज भी नहीं होगा। वे युवा हैं और कांग्रेस में फिलहाल युवाओं को ज्यादा तरजीह दी जा रही है।
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वेब मीडिया के ज़रिये छत्तीसगढ़ को बाकी दुनिया से जोड़ने के लिए बधाई.....आपके प्रयास अच्छे हैं...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कथुरिया जी
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
जरूर अजय जी.. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विप्लव जी व संगीता जी..
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