भाजपा की बहुप्रतीक्षित टीम गड़करी की घोषणा तो कर दी गई, लेकिन इस टीम को लेकर पार्टी के भीतर ही भीतर असंतोष के स्वर भी सुनाई पडऩे लगे हैं। सबसे ज्यादा नाराजगी छत्तीसगढ़ के आदिवासी वर्ग में है, जिसे कम से कम इस बार तो राष्ट्रीय टीम में शामिल होने की उम्मीद थी। इसके अलावा मुस्लिम तबका भी नाराज़ है।
पिछले करीब 10 वर्षों से छत्तीसगढ़ के आदिवासी समय-बेसमय एकजुट होते रहे हैं और अपनी ताकत का अहसास भी कराते रहे हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के बूते ही भाजपा छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में कामयाब रही। बावजूद इसके सत्ता से लेकर संगठन तक में उनकी उपेक्षा की जाती रही है। राजनाथ सिंह की पिछली टीम में छत्तीसगढ़ से करूणा शुक्ला उपाध्यक्ष और सरोज पाण्डेय सचिव बनाईं गईं थीं। गड़करी ने इन दोनों को इसी पद पर बरकरार रखा है। दिलीप सिंह जूदेव को कार्यकारिणी में रखा गया है तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संसदीय दल के सचेतक रमेश बैस को स्थाई आमंत्रित सदस्य बनाया गया है।
हाल ही में राजधानी रायपुर में पूरे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने रैली कर अपनी ताकत दिखाई थी। इस रैली में भाजपा, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी समेत अन्य दलों के आदिवासियों ने शिरकत की और मुख्यमंत्री और राज्यपाल जैसे अहम् पदों पर अपनी दावेदारी ठोंकी थी। किन्तु भाजपा संगठन में ही उनकी एक बार फिर उपेक्षा कर दी गई। राज्य में आदिवासी एक्सप्रेस चलने की खबरें प्रमुखता पाती रही हैं। खासतौर पर स्वयं को आदिवासी बताने वाले अजीत जोगी के शासनकाल के दौरान आदिवासी लामबंद हुए। इन आदिवासियों का नेतृत्व तब वरिष्ठ भाजपा नेता नंदकुमार साय ने किया था- जो अपनी कठोर टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। संभवत: यही वह वक्त था, जब 'इंदिरा प्रेमी आदिवासी भाजपा की ओर उन्मुख हुए। लेकिन साय को भी इसका कोई प्रतिसाद नहीं मिल पाया। फिलहाल वे हाशिए पर हैं, पर उनकी तैयार की गई जमीन पर भाजपा अब भी वोटों की खेती कर रही है।
सिर्फ आदिवासी ही नहीं, मुसलमानों में भी टीम गड़करी को लेकर नाराजगी का पुट है। मंदिर-मस्जिद मिलकर बनाने, मुसलमानों के साथ सामंजस्य बनाकर काम करने और पार्टी का प्रचलित चोला बदलने की बात करने वाले गडकरी की टीम में अपनी नजरअंदाजी मुसलमान पचा नहीं पा रहे हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ भाजपा में कोई बड़ा मुस्लिम नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आया है, फिर भी अपने समाज को लीड करने वाले कई नेता चिंतित हैं। दरअसल, अपना राजनैतिक कद बढ़ाने की लगातार कोशिशें करने वाले भाजपा के मुस्लिम नेताओं को इस बात की चिंता सता रही है कि अपने लोगों के बीच जाकर वे क्या संदेश देंगे? गौरतलब है कि राज्य के अधिकांश मुसलमान आज भी भाजपा से दूर हैं। विकल्प के अभाव में वे कांग्रेस का साथ देते रहे हैं। उन्हें पार्टी के करीब लाने के लिए भाजपा की अल्पसंख्यक इकाइयां लगातार काम कर रही हैं, लेकिन उनकी कामयाबी का प्रतिशत बेहद कम है। सही मायनों में, छत्तीसगढ़ की अल्पसंख्यक बिरादरी भाजपा को अछूत मानती रही है। उसके कई कट्टरपंथी नेताओं की कड़वी जुबान से यही बिरादरी आहत होती है। शायद यही वजह है कि भाजपा के अल्पसंख्यक नेताओं से समाज के लोग कुछ दूरी बनाकर रखते हैं। भले ही पार्टी के नेता इसे स्वीकार नहीं करे और यह दावा करें कि अब अल्पसंख्यक वर्ग भाजपा के साथ हैं, किन्तु हकीकत यही है कि भाजपा अब तक मुसलमानों का विश्वास अर्जित नहीं कर पाई है।
पार्टी के एक जिम्मेदार मुस्लिम नेता के मुताबिक, हर बार यदि प्रचलित चेहरों को ही मौका दिया जाएगा तो बाकी लोग क्या करेंगे? जो लोग पहले से ही महत्वपूर्ण पदों पर हैं या सांसद, मंत्री हैं, उन्हें ही हर बार महत्व मिलता रहेगा तो उन लोगों का क्या- जो पूरी जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं और जिन पर पूरे समाज या समुदाय की जिम्मेदारी है? प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विष्णुदेव साय के मुताबिक, भाजपा की राष्ट्रीय टीम में प्रदेश के चार पदाधिकारियों दिलीप सिंह जूदेव, करूणा शुक्ला, सरोज पान्डेय व सौदान सिंह सहित सात सदस्यों को दिए प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस नई टीम से प्रदेश को नई दिशा मिलेगी।
दुर्ग जिले की सांसद सरोज पाण्डेय की नेतृत्व क्षमता पर शायद ही किसी को संदेह हो। महज कुछ वर्षों में एक सामान्य कार्यकर्ता से ऊपर उठकर वे दो बार महापौर, 1 बार विधायक और अब सांसद निर्वाचित हुई। कुछ समय में ही उन्होंने प्रदेश भाजपा की प्रवक्ता और राष्ट्रीय मंत्री तक का सफर तय किया। ऐसे नेतृत्व को सामने लाने का पार्टी में जोरदार स्वागत किया जाना चाहिए और सही मायनों में ऐसे युवाओं पर ही भाजपा की भावी कमान होगी। लेकिन पार्टी को और ज्यादा निखारने और छूट रहे बड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व देना भी पार्टी की ही जिम्मेदारी है। बेहद स्वादिष्ट भोजन में एक कंकड़ ही पूरा स्वाद खराब कर देता है। भाजपा के जायके में ऐसा कोई कंकड़ न आए, इसका गड़करी को ध्यान रखना होगा।
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