मंगलवार, 11 मई 2010

पसंद करने पर नापसंद क्यों हो रहे हैं चिट्ठे

दोस्तों, पूरे यकीन के साथ कह रहा हूं कि ब्लागर साथियों के साथ काफी कुछ गलत हो रहा है। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि टॉप लिस्ट में शामिल होने के लिए कई लोग किस तरह की लामबंदी और गिरोहबंदी कर रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो हो रहा है, वह सबके साथ बांटना चाहता हूं। अभी शनिवार की बात है। मैंने एक ब्लाग को पसंद किया तो वह -2 (माइनस 2) हो गया। यानि यह बताया गया कि इस ब्लाग को दो लोगों ने नापसंद किया है। जबकि इससे पहले पसंद या नापसंद शून्य बता रहा था।) पसंद के बाद माइनस में जाना मुझे समझ में नहीं आया। कल भी मैंने एक ब्लागर का चिट्ठा जब पसंद किया (जिसे पहले से ही 3 लोगों ने पसंद किया था) तो भी मेरी पसंद नकारात्मक गई। जबकि मैं यह बेहतर जानता हूं कि चिट्ठे को पसंद कैसे किया जाता है और नापसंद कैसे? मंगलवार शाम को जब मैंने एक घटिया किस्म के ब्लाग को नापसंद किया तो आश्चर्यजनक रूप से दो अंक प्लस में चला गया। ब्लाग जगत के दिग्गजों से मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ऐसा भी हो सकता है? कृपया मुझे बताएं कि पसंद करने वाले नापसंद और नापसंद करने वाले पसंद कैसे बन रहे हैं।

एक बात और बताना चाहूंगा। एक महिला के जब मैंने टिप्पणी भेजी तो संदेश आया कि आप इस ब्लाग पर संदेश नहीं भेज सकते। जबकि मैंने उस महिला की पंक्तियों को सराहा था। क्या ऐसा हो सकता है कि कुछ लोग अपने ब्लाग में ऐसे ईमेल डालकर रखें, जिनकी टिप्पणी प्रकाशित ही न हो पाए? इससे पहले एक सज्जन के साथ भी मेरा यही अनुभव रहा है और मजे की बात यह है कि यह दोनों एक दूसरे के साथ हैं। इसे क्या माना जाए?

23 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार जादू सा लगता है. :) मगर होता यह है कि आपके चटका लगाने पर रिफ्रेश होता है तो इस बीच की गतिविधियां सम्मलित हो जाती हैं. आप तो अपना चटका लगाते रहिये. :)




    एक अपील:

    विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  2. नरेश भाई, समीर जी ने एकदम सही कहा… जब आप चटका लगाये और रिफ़्रेश किया (या नहीं भी किया) उस बीच में 2-3 लोग पसन्द (या नापसन्द) पर चटका लगाकर चले गये तो ये होना ही है… आप तो बस अच्छे चिठ्ठों को पढ़ते चलिये, पसन्द-नापसन्द के चटके के चक्कर में ना पड़ें… समीर भाई, रवि रतलामी, वडनेरकर आदि लोगों के फ़ॉलोअर्स और सब्स्क्राईबर्स ही इतने हैं कि यदि सभी चटका लगाने लगें तो "चटका सुनामी" आ जायेगी, और इसीलिये मैं भी यह नहीं देखता कि कितने पसन्द हुए या नापसन्द हुए… आप अच्छा पढ़ें (ज़ाहिर है कि अच्छा लिखेंगे भी) तो अपने-आप इन सारी बातों की तरफ़ ध्यान जाना बन्द हो जायेगा। पसन्द-नापसन्द का खेल है भी कितना सिर्फ़ 24 घण्टे का… 24 घण्टे के बाद ही उस पोस्ट की असली औकात पता चलती है…
    शेष शुभ हो…

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  3. लगे रहो मुन्नाभाई। फल की चिंता मत करो।

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  4. आप तो भाईजी अच्छा कर रहे हो। लफड़े-तफड़े में मत रहो। कौन क्या कर रहा है, इससे अलग अपना काम करो।

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  5. सुरेश जी की सलाह पर ध्यान दिया जाय

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  6. इस विषय पर पाबला जी, संजीव तिवारी ललित शर्मा और जीके अवधिया जी से भी चर्चा करना ठीक होगा। इनके पास तकनीक की जानकारी ज्यादा है। अपने को तो समझ में ही नहीं आता कि माजरा क्या है। लिखकर भूल जाओ.. मगर ऐसा लिखो कि लोग उसे न भूले।

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  7. ...पसंद-नापसंद का खेल चल रहा है ...!!

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  8. ...लगता है बहुत सारे गिरोह काम कर रहे हैं ...!!!

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  9. ... इस कूडा-करकट को कोई न कोई पंदौली दे रहा है ...!!!

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  10. .... कैर कोई बात नहीं आप तो लिखने में मस्त रहो ...!!!

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  11. ... पर बीच-बीच में ऎसे ही बाजा फ़ाडते रहना ...!!!

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  12. विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है....udan tastari ji se saabhaar.

    tippaniyo se kyaa firk padta hai?kisee ke pasand/napasand likhne se acchi baate/lekhan/rachna damdar ya bedam nahi ho jaati......rachnaatmak lekhan swaarth se pare hona chahiye. main to samajhta hun aap jaisa uchit samajhe likhe chatka laganevaale aise hi lagate rahenge.yeh sach hai ki kuch log khel khel rahe hai... lekin ye kaisa khel jisme kisee ka kuch bhala nahi ho sakta...han achhi lekho ka sirf bura ho sakta hai.achhe lekhak ke kalam ko is khel se nahi roka jaa sakataa.

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  13. ब्लागर साथियों के साथ काफी कुछ गलत हो रहा है।

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  14. पसंद करने वाले नापसंद और नापसंद करने वाले पसंद कैसे बन रहे हैं।

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  15. एक घटिया किस्म के ब्लाग को नापसंद किया तो आश्चर्यजनक रूप से दो अंक प्लस में चला गया।

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  16. मैं यह बेहतर जानता हूं कि चिट्ठे को पसंद कैसे किया जाता है और नापसंद कैसे?

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  17. पाबला जी, संजीव तिवारी ललित शर्मा और जीके अवधिया जी कोई तोप हैं क्या

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  18. पसंद करने पर नापसंद क्यों हो रहे हैं चिट्ठे

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  19. Yah sab meri jaankaari ke pare hai..! yah zaroor chahungi ke mel milap ka watawaran bana rahe..hamesha wo bhi shayad mumkin nahi!

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  20. ye naya facter hai bhai.

    blog ki dunia me aise hi kuchh hote hai
    rites

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  21. Munna: Abay Circuit!

    Jaa baajo walay ghar say Doctor ko bula k laa,

    meri tabiat kharab ho reli hai.

    Circuit: Aey Bhai ! aap to khud doctor ho.

    Munna: Bolay to meri fees bahut zyada hai na.

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  22. Some Day u'll Cry For Me Like I Cried For u
    Day u'll Miss Me Like I Missed u
    Day u'll Need Me Like I Needed u
    Me But I Won't Love u

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