सोमवार, 10 मई 2010

चेंदरू के बेटे को शिक्षक बना दो

                                     (नरेश सोनी)

क्या आप चेंदरू को जानते हैं? सवाल अजीब लग सकता है - कौन चेंदरू? 1960 के दशक में एक 10 साल का माडिय़ा आदिवासी अंतरराष्ट्रीय नायक बनकर उभरा था। चेंदरू पर स्वीडिश फिल्मकार अर्ने सुकेड्राफ की पत्नी एस्ट्राइड सुकेड्राफ ने एक किताब लिखी थी। इस किताब का विलियन सैमसंग ने अंग्रेजी अनुवाद किया। बाद में अर्ने ने 10 साल के चेंदरू के जीवन का पूरे 2 साल तक फिल्मांकन किया। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चेंदरू और उसका शेर नामक यह फिल्म बेहद कामयाब रही। जिसके बाद किसी अबूझमाडिय़ा को पहली बार विदेश जाने का भी अवसर मिला। बाद में फ्रांस में भी चेंदरू एट सन टाइगर नाम की पुस्तक छपी। अमेरिका में भी इसी दौरान चेंदरू : द ब्वाय एंड द टाइगर के नाम से किताब प्रकाशित हुई। अभी कुछ समय पहले ही चेंदरू और उसके जीवन पर एक समाचार चैनल ने घंटेभर का विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित किया था और उसकी वर्तमान बुरी हालत की परतें खोली थी। अबूझमाड़ के इसी चेंदरू का बेटा शिक्षक बनना चाहता है।

चेंदरू की कहानी विदेशों में शायद इसीलिए पहचान बना पाई कि एक 10 साल के लड़के का दोस्त एक व्यस्क शेर था। चेंदरू सारा दिन इसी शेर के साथ जंगलों में घूमता, शिकार करता। शायद विदेशों में इस कहानी की लोकप्रियता टारजन जैसी फिल्मों की वजह से हुई। टारजन को काल्पनिक पात्र माना जाता है, लेकिन भारत के बेहद पिछड़े परिवेश में एक वास्तविक टारजन का हीरो बन जाना वाकई चकित करने वाला है। चेंदरू तो अनपढ़ था, किन्तु उसने अपने बच्चों को पढ़ाया। उसका बेटा जयराम शिक्षाकर्मी बनना चाहता है। वह बस्तर जैसे पिछड़े इलाके खासकर अबूझमाड़ में शिक्षा की अलख जगाने का इच्छुक है। वैसे, एक नंगी सच्चाई यह भी है कि नारायणपुर जिले के गड़बेंगाल में रहने वाले चेंदरू का परिवार दो जून की रोटी का भी मोहताज है। समाचार चैनल में चेंदरू की लम्बी स्टोरी चलने के बाद बस्तर के प्रभारी मंत्री केदार कश्यप ने चेंदरू को 25 हजार रूपए का अनुदान दिया था। लेकिन उसके बाद से कभी, किसी ने इस परिवार की सुध नहीं ली। जबकि नारायणपुर जिले का अबूझमाड़ ही वह क्षेत्र है, जो सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित है। सरकार ने इस क्षेत्र के शिक्षिक बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया था, लेकिन यह ऐलान जमीन पर आकर कब का दम तोड़ चुका है। एक ओर जहां बस्तर के भीतरी इलाकों में जाकर कोई काम करना नहीं चाहता तो दूसरी ओर इच्चुक स्थानीय लोग ही उपेक्षित हैं। इस विडंबना से पार पाना बड़ी चुनौती है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. ... कुछ भला हो जाये यही शुभकामनाएं !!!

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  2. हाँ ये हुई न बात। फोटो-सोटो से थोड़ा खिल रहा है।
    बढ़ीया है।

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  3. चेंदरू के बारे में थोड़ी और जानकारी देते तो अच्छा होता। कुल मिलाकर अच्छा लेख है।

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  4. सतीश जी, चेंदरू को मैं आज भी अंतरराष्ट्रीय हस्ती मानता हूं। भले ही छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें उतना महत्व नहीं दिया, लेकिन बस्तर के लिए उनका वही योगदान है, जो पूरे महाराष्ट्र के लिए अमिताभ बच्चन या शाहरूख खान का। उन्होंने बस्तर को ऐसे समय में वैश्विक पहचान दी, जब लोग इस क्षेत्र से वाकिफ नहीं थे। मैं समझता था कि लोग उनके बारे में काफी कुछ जानते होंगे, इसलिए ज्यादा विस्तार देने से परहेज किया। यदि पाठकों की ओर से ऐसा कुछ संकेत होगा तो जरूर विस्तार से लिखूंगा।

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  5. जरूर भैय्या जी , इस रीयल हीरो के बारे में जरूर लिखें .....

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  6. पिछले वर्ष मेरा एक पत्रकार मित्र चेंदरू से मिला था, उसके तंगहाली से मैं वाकिफ हूं.
    शासन को उसके पुत्र को शिक्षाकर्मी बनाकर चेंदरू की सहायता करना ही चाहिए.

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  7. चेंदरु वास्तविक हीरो है, उसके परिवार की सुध ली ही जानी चाहिए।

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