अपन ने अपने ब्लाग का वर्ग बदल लिया है। क्या करें, मजबूरी थी। भाई-दीदी लोग टिप्पणी करने में भी कंजूसी कर रहे थे। कंजूसी क्या कर रहे थे, समाचारों को पसंद नहीं कर पा रहे थे। अब जब पसंद ही नहीं आएगा तो टिप्पणी क्या खाक करेंगे? ...तो इसलिए फुल एंड फाइनल अब छत्तीसगढ़ खबर में
मौज और मस्ती
चायपत्ती सस्ती
पुराने विचार नस्ती।
पिछले तीन महीनों से लगातार ब्लाग पढऩे और शीर्ष पर चढऩे वाले ब्लागों को देखने के बाद यह नतीजा निकला है कि अब मैं भी
अटका-मटका
मारो-फटका
झूमो-झटका
उठाओ-पटका
आओ-खाओ
पिओ-सुस्ताओ
सोओ-मस्ताओ...
..टाइप का कुछ लिखने की कोशिश करूंगा। क्षमा कीजिएगा, पर कोशिश करूंगा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आज से पहले कभी इस तरह की चीजें लिखी नहीं है। जानता हूं कि इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है पसंद ही किए जाएं, पर रिस्क लेने में खर्च क्या होना है? तो मित्रों, आज से अपन भी नए सिरे से मैदान में उतर रहे हैं। स्वागत नहीं करेंगे क्या?
ये प्रतिष्ठित पत्रकार हैं या सत्ता के दलाल?
जवाब देंहटाएंकॉर्पोरेट घरानों के लिए राजनीतिक जनसंपर्क का काम करने वाली नीरा राडिया के फोन टेप किए जाने पर देश के जाने माने पत्रकार वीर संघवी और बरखा दत्त के नाम भी सामने आए हैं। आयकर विभाग द्वारा तैयार की गई गोपनीय फाईलों में टेलीफोन टेप के जो रिकॉर्ड में ये बात सामने आई है कि बरखा दत्त और वीर संघवी दोनों नीरा राडिया के लिए काम करते थे। यह भी बात सामने आई है कि मनमोहन सिंह की सरकार के शपत घ्रहण समारोह के दौरान बरखा दत्त और वीर संघवी ने कई कॉरपोरेट घरानों के लिए कांग्रेस नेताओं के साथ सौदेबाजी की। बरखा दत्ता और वीर सांघवी ने नीरा राडिया के कहने पर ए राजा को संचार मंत्री बनवाने अहम भूमिका निभाई। बरखा दत्त एनडीटीवी की ग्रुप एडिटर हैं तो वीर सांघवी हिंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय सलाहकार। अब देखते हैं एनडीटीवी और हिन्दुस्तान टाईम्स की ब्रेकिंग न्यूज़ क्या खुलासा करती है?
bhai photo bhi do
जवाब देंहटाएं& aapne cell number bhi
मुंबई में 26 नवंबर 2008में हुए आतंकवादी हमले के लिए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को
जवाब देंहटाएंगुरुवार को फाँसी की सजा ले ही सुना दी गई है लेकिन उसकी सजा की पुष्टि बॉम्बे उच्च न्यायालय से होेन के बाद बी इसमें की कानूनी पेंच हैं, जो उसे फाँसी के फंदे से बचाए रखेंगे। देश की कई जेलों में 308 अपराधी पहले से ही मृत्युदंड का इंतजार कर रहे हैं।
देश के सर्वोच्च न्यायालय में और देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 256 मामले लंबित पड़ें हैं जो फाँसी की सजा के मामले में लंबित हैं। दूसरी ओर कुल राष्ट्रपति के समक्ष 52 लोगों फाँसी की सजा के खिलाफ अपील कर रखी है। यदि कसाब उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में जाता है और फाँसी की सजा बरकरार रहने के बाद राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करता है तो उसकी याचिका भी अफजल गुरु की तरह सरकारी फाईलों में पड़ी रहेगी। कसाब से पहले मोहम्मद अफजल गुरु को संसद पर हुए आतंकवादी हमले में मौत की सजा सुनाई गई थी। मौत की सजा के खिलाफ अफजल गुरु ने राष्ट्रपति के सामने क्षमा याचना की है।
इसी तरह अडरवर्ल्ड डॉन टाइगर मेनन के भाई याकूब मेनन को भी मौत की सजा सुनाई गई थी। वर्ष 2006 में मुंबई की आतंकवाद निरोधी विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा अबी सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए पड़ी हुई है। 31 दिसंबर 2007 तक की केंद्र सरकारी की जानकारी के अनुसार देश के विभिन्न जेलों में बंद 308 कैदी मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं। इनमें से 52 लोगों ने राष्ट्रपति के समक्ष मृत्युदंड के खिलाफ क्षमा याचना की अपील की है।
फाँसी के लिए जल्लाद कहाँ?
मुंबई की विशेष अदालत में 22 वर्षीय आतंकवादी कसाब को फाँसी की सजा दिए जाने के बाद ये सवाल उठ खड़ा हुआ है कि कसाब को फाँसी पर कौन चढ़ाएगा। महाराष्ट्र की किसी भी जेल में कोई जल्लाद नहीं है। दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी कोई जललाद नहीं है। तिहाड़ जेल में आखिरी बार 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या में दोषी पाए सतवंत सिंह और केहर सिंह को फाँसी की सजा दी गई थी। देश में आखरी फाँसी की सजा 2004 में पश्चिम बंगाल में 14 वर्षीय लड़की हेतल पारिख की बलात्कार के बाद हत्या करने वाले धनंजय चटर्जी को दी गई थी। धनंजय को 87 वर्षीय जल्लाद नाटा मल्लिक ने फाँसी दी थी। मल्लिक की भी दिसंबर 2009 में मौत हो गई।
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पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के रास्ते हर साल 15 लाख गायों को तस्करी के माध्यम से बांग्लादेश भेजा जा रहा है जहाँ कत्ल़खानों में इन्हें काटा जाता है। भारत-बांग्लादेश सीम पर कड़ा पहरा होने के बावजूद सीमा प्रहरी रिश्वत लेकर गाय के तस्करों को बंगलादेश की सीमा में भेजते हैं। ये गायें झारखंड, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेनों और ट्रकों में लाई जाती है। भूख और प्यास के साथ ही रेल और ट्रक की लंबी यात्रा से थककर निढाल हो चुकी इन गायों को प्रतिबंधित दवाओं के इंजेक्शन देकर भारत की सीमा से बंगाल की सीमा में दौड़ाया जाता है। गायों के तस्कर एक गाय को 5 हजार में खरीदते हैं और सीमा पार ले जाकर बंगलादेश के कसाईयों के हाथों में बेच देते हैं। गायों को बंगला देश में यह पूरा कारोबार 2500 करोड़ रुपए का है।
जवाब देंहटाएंkuch bhi likhiye per - tipadiyo ko lakshy bana ke na likhiye ga
जवाब देंहटाएंहा हा हा स्वागत है, नरेश भाई. आपके अतिथि लेखक के रूप में टिप्पणीकार रीतेश भाई का भी स्वागत.
जवाब देंहटाएं...कौन है ये टिप्पणीकार ...!!!
जवाब देंहटाएं...चलो ठीक है ...!!!
जवाब देंहटाएं...जल्दबाजी में कोई फ़ैसला ...!!!
जवाब देंहटाएं...अभी तक तो ठीक लिख रहे थे ...!!!
जवाब देंहटाएं... नये रूप में भी स्वागत है ...!!!
जवाब देंहटाएंअरे ये क्या है-
जवाब देंहटाएंअच्छा-भला तो लिख रहे थे.
काहे तो उलजुलूल लेखन में कूदे हो. अब कूद ही गये तो ठीक है, पर अपनी धारदार लेखनी भी जारी रखना।
ब्लाग मे कूछ भी टिप्पणी करा रहे है सोनी जी। एक दिन आपके ब्लाग में 100 से ज्यादा टिप्पणिया देख के माथा ठनका। खोला तो पता चला कि यही रीतेश कुमार टिकरिहा ने दन-दन कुछ भी लिख दिया था।
जवाब देंहटाएंswagat hai,aashaa hai naye rup me bhi aap blogjagat ke liye acchaa hi karenge.
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