गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

कौन मैली कर रहा है यह गंगा

एक बार फिर कुछ विघ्नसंतोषी गंगा को मैली करने पर तुल गए हैं। पता नहीं कौन-सा खेल है, पर इस खेल का नतीजा नहीं आना चाहिए, अन्यथा एक सुंदर और पवित्र मंशा को लेकर आगे बढ़ रहा ब्लाग सागर पूरी तरह से गंदा हो जाएगा।
पिछले कई दिनों से लगातार देख और पढ़ रहा हूं। ...और अब न चाहते हुए भी लिखना पड़ रहा है। साथियों, लम्बे प्रयासों के बाद मुझे हिन्दी में ब्लागिंग करने का अवसर मिला और तब सोचा था कि इस बहाने कई लोगों से सम्पर्क करने और अपनी बातों को बहुसंख्य तक पहुंचाने का अवसर मिल पाएगा। मुझे लगता है कि ऐसा औरों ने भी सोचा होगा। इस तरह एक जैसी पवित्र सोच लेकर हजारों लोग आगे बढ़ रहे हैं। पर लगता है कई खरगोशों को कछुओं की रफ्तार कुछ ज्यादा ही नजर आ रही है। उन्हें डर है कि यदि वे कहीं कमजोर पड़े तो कछुए एक बार फिर जीत हासिल कर लेंगे। पंचतंत्र की इस खरगोश और कछुए वाली कहानी से शायद ही कोई भारतीय अपरिचित होगा। पर इसी के साथ मैं अपने साथियों को एक बात और बताना चाहूंगा। एक कथित ब्लागर मित्र (कथित इसलिए कि उसकी गतिविधियों बिलकुल शून्य है, पर अपने सम्पर्कों तक लिंक पहुंचाने में वह चूक नहीं करता, भले ही उसके ब्लाग में सालभर पहले की पोस्ट पड़ी हुई हो।) ने कल ही मुझे बताया कि ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत में जाकर वह लेखों को बिना पढ़े ही टिप्पणी कर रहा है। ...और यह भी कि कई बड़े चिट्ठाकारों पर उसने नकारात्मक और बकवास किस्म की टिप्पणियां की है। (निवेदन है कि इस कथित ब्लागर का नाम न पूछें।) बहरहाल, मैंने इन सज्जन को अपनी और अन्य ब्लागर साथियों की भावनाओं से अवगत करा दिया है और उससे वायदा भी लिया है कि आइंदा वह इस तरह की हरकत नहीं करेगा।
साथियों, ब्लाग जगत में कई ऐसे लोग भी सक्रिय है, जिनका लिखने और पढऩे से कहीं कोई वास्ता नहीं है। ऐसे लोग महज मजा लेने के लिए आते हैं और मजा लेने के लिए उट-पटांग टिप्पणियां और नापसंदगी का चटखा लगा जाते हैं। मैं यह नहीं कहता कि सिर्फ ऐसे ही लोग ब्लाग-सागर को गंदा कर रहे हैं। संभव है कि सक्रिय किस्म के लोग भी ऐसा कर रहे हों, जैसा कि मैंने खरगोश और कछुए की कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास किया है। इस बारे में ज्यादा कुछ इसलिए भी नहीं कहूंगा कि मुझे किसी पचड़े में नहीं पडऩा है। मैं एक शुद्ध और बेहतर सोच लेकर आगे बढऩा चाहता हूं। किसी की बुराई कर या व्यर्थ की बातें लिखकर अपने चिट्ठों में टिप्पणियों की संख्या बढ़ाने पर मेरा विश्वास नहीं है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वे करते हैं।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ...मैली हो रही गंगा की सफ़ाई ... सार्थक अभिव्यक्ति !!!

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  2. अमित जोगी ने अपने ब्‍लाग आधी आजादी में स्‍लमडाग मिलेनियर पर मैना यह शब्‍द देखा-पिछले दो दशकों के तूफानी दौर।
    पिछले दो दशकों के तुफानी दौर ने हमारी पूरी जीवन पद्धति बदल दी है। मुझे लगता है, उम्‍मीद व निराशा के पाटों में बंटे जनसमाज ने मिलकर बीच का एक बड़ा तबका रच डाला है देश में मीडिल वर्ग के 35 करोड़ लोगों के बड़ा तबके का एक बड़ा हिस्‍सा खुद को असुरक्षित समझने लगा है। उनमें यह आस्‍था दृढ़ हुई है कि पैसे के अलावा भविष्‍य में किसी अन्‍य के काम आने की ज्‍यादा गारंटी नहीं। मुझे स्‍वीकार करने में कोई संकोच नहीं, कि मैं स्‍वयं इस परिपाटी का हिस्‍सा हूं।
    यद्यपि बड़े लोगों के लिए एक-दो करोड़ रूपया अब अधिक राशि नहीं रह गई है. लेकिन मीडिल का एक औसत परिवार ईमानदारी के दम पर जिंदगी भर में इतना ही संपत्ति नहीं बना पाता। उसके सामने हमेशा मीडिल वर्ग से बाहर निकाल दिए जाने का खतरा बरकरार रहता है। ऐसे में यदि स्‍लमडाग मिलेनियर का नायक एक साथ दो करोड़ रूपए जीतता है तो वह हमारे ही सोच का आदर्श प्रतिंबिंब बनता है।
    दरअसल आम हिंदुस्‍तानी पिछले 25 सालों में पाने से ज्‍यादा खोता ही गया है। हालिया दौर में मीडिल वर्ग का जीवन खोने की परिभाषा में इब्‍तदा होता गया है। लेकिन यह खोना ऐसा नहीं कि यह तबका कंगालपति होकर सड़क पर आ गया हो। ऐश्‍वर्य व भौतिक सुविधा जुटाने के बावजूद अंदर से कुछ खो गया है। खुशी दूर होती जा रही है। जीवन जीने की कला सिखाने वालों के शरण में जाना पड़ रहा है। यूं लगता है जैसे बहुत लोगों का जीवन विवशता का सबब बन चुका हो। अंदर की छटपटाहट, मायुसी व अशांति के इस जड़कन से बाहर तो निकलना चाहता है, पर रास्‍ते नहीं दिख रहे हैं।
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    आमिर खान की फिल्‍म तारें जमीं पर, और स्‍लमडाग मिलेनियर इसी उम्‍मीद व निराशा के दो धु्व्रों का प्रकटीकरण करते है। एक ओर उन बच्‍चों को संवारने का जद़दोजहद है तो दूसरी ओर स्‍लमडाग में बच्‍चों को अपाहिज कर भीख मंगवाने वाले गिरोह भी हमारे ही समाज के हिस्‍से है।
    .ऋतेष 94076 58286

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  3. durg is my city
    Durg has a very rich Cultural heritage.
    The people of Durg also have a great tendency towards adopting new trends and life styles.Durg thus is multicultural for people from all over the world have com and settled in this region.Durg's people are also known for their simplicity ,Kind hearted ness and adaptibility.And this is the actual culture of Durg.

    The people of this region are very fond of colours.The dresses they wear are all colourful.Women too wear sarees with Kardhani. In rural areas women wear mala made of one rupee coins.Though this has gone out of trend these days.The people of this region are also known for creating humour out of language.Comical plays are very popular and are worth watching.

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    Durg is rich in its cultural heritage. Durg has its own dance styles ,cuisine, music & traditional folk songs in which sohar song, bihav song & Pathoni songs are very famous. Sohar songs are related to child birth, Bihav songs are related to marriage celebration . The main parts of Bihav songs
    post scrap cancel delete Apr 6

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