- प्रभात अग्रवाल -
बस्तर में बल के बढ़ते दबाव के चलते नक्सली शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं। इस तरह की मिल रही गोपनीय सूचनाओं के बाद नक्सल प्रभावित जिलों के आसपास के इलाकों को सतर्क कर दिया गया है। सीमाओं पर चौकसी बरतने को भी कहा गया है। बस्तर के ताड़मेटला घटनाक्रम के बाद एक ओर जहां देशभर में लोगों ने गम्भीर प्रतिक्रिया जताई है तो दूसरी ओर राज्य और केन्द्र सरकार भी अब और ज्यादा सख्ती के मूड़ में है। हालातों को भांपकर नक्सलियों ने भी पैतरा बदल दिया है और अब वे शहरों की ओर रूख कर रहे हैं।
नक्सलियों द्वारा बस्तर में 76 जवानों की नृशंस हत्या के बाद सीआरपीएफ के जवान बीहड़ों में जाने से परहेज कर रहे हैं। हाल ही में यह खबर भी आई थी कि इन जवानों को खाने और साफ पानी की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। मौसम की मार और मच्छरों की वजह से जवान पहले ही परेशान रहे हैं, वहीं नक्सलियों के हमलों की आशंका भी बराबर बनी रहती है। इस तरह की तमाम दिक्कतों के बाद अब केन्द्र और राज्य की सरकार मिलकर नए सिरे से योजनाएं बनाने और उसे मूर्त रूप देने में जुट गए हैं। लेकिन एक बात पूरी तरह से साफ हो गई है कि नक्सलियों के खिलाफ सेना और वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। दरअसल, इसके पीछे अपने कई कारण हैं। यदि सेना को बस्तर में तैनात किया जाता है तो पूरा बस्तर सैन्य शासन के दायरे में आ जाएगा और इस पूरे संभाग में सेना की मर्जी के बिना कोई काम नहीं हो पाएगा। इससे बस्तर के विकास और वहां के जनजीवन पर भी असर पडऩे की संभावना है, वहीं सेना के कोप का शिकार उन आदिवासियों को होना पड़ेगा, जो नक्सलियों के भय की वजह से जाने-अनजाने उन्हें प्रश्रय या किसी न किसी तरह का सहयोग करते रहे हैं। इसलिए अब नए सिरे से नई रणनीति के तहत फूंक-फूंककर कदम धरने की जरूरत है।
इधर, ताड़मेटला घटना के बाद जवानों की हौसला अफजाई के लिए डीजीपी विश्वरंजन ने पत्र लिखा है। अपने पत्र में उन्होंने ताड़मेटला घटना से सबक लेने और भविष्य में सर्चिंग अभियान के दौरान सावधानी बरतने की बात कही है। एक ओर जहां केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् तीन साल के भीतर नक्सलियों के खात्मे की बात कह रहे हैं तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह दो साल में छत्तीसगढ़ को नक्सलियों से मुक्त करने का दावा कर रहे हैं। इस तरह की बातों और दावों का जवाब नक्सली अपने प्रचलित तरीके से ही दे रहे हैं। ताड़मेटला घटना की जांच करने पहुंचे केन्द्रीय दल पर नक्सलियों ने गोलियां बरसाईं तो बस्तर के डिलमिली में जिस तरह उन्होंने रेल पटरियां उखाड़कर मालगाड़ी के 13 डिब्बे उतार दिए, उससे रेल यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ और करोड़ों रूपयों का नुकसान भी हुआ। वास्तव में, जब-जब नक्सलियों के खात्मे जैसे बयान आते हैं, वामपंथी उग्रवादी कोई न कोई बड़ी घटना को अंजाम देते हैं। इसलिए राजनेताओं को किसी तरह का बयान देने से पूर्व सावधानी बरतना भी जरूरी है। मालगाड़ी की पटरियां उतारकर नक्सलियों ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि उनकी गतिविधियों पर विराम नहीं लगा है। ....और इन सबके बाद अब नक्सलियों के शहरी क्षेत्रों में कूच करने की खबरें भयभीत करने वाली हैं। कुछ अरसा पहले राजधानी रायपुर और भिलाई क्षेत्र से कई बड़े नक्सली समर्थकों को असलहे के साथ गिरफ्तार किया गया। तब पहली बार यह पता चला कि नक्सली सिर्फ बीहड़ों ही नहीं, शहरों में भी काम कर रहे हैं।
फिलहाल बस्तर के लिए एक नई खबर सामने आई है कि वहां जनगणना का कार्य नहीं हो पाएगा। नक्सली आतंक के चलते यह संभव भी नहीं दिख रहा है। इसलिए प्रशासन ने वहां जनगणना के लिए कोई नया उपाय सुझाने संबंधी पत्र लिखा है। लेकिन बस्तर जैसे जटिल और विस्तृत क्षेत्र में कोई नया उपाय काम करेगा, इस बात की संभावना कम ही है। दरअसल, नक्सलियों के भय से मतगणना कर्मी गांवों में जाना नहीं चाहते। नतीजतन बस्तर के सभी 4 जिलों में यहब कार्य पहले से ही ठंड़ा पड़ा हुआ है। इधर, कांग्रेस ने सुरक्षा बलों में पारस्परिक तालमेल के लिए राजभवन में नोडल अफसर की नियुक्ति का सुझाव दिया है। राज्यपाल से चर्चा करने पहुंचे कांग्रेसियों का कहना था कि प्रत्येक नक्सली वारदात के बाद सरकार रणनीतिक चूक का रटा-रटाया जवाब देती है और नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब देने की बात कही जाती है, लेकिन आज तक ऐसा हो नहीं पाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द साहू ने कहा कि बस्तर में जनजीवन सामान्य नहीं है। आदिवासियों की खेती-बाड़ी चौपट हो गई है। हाट-बाजार बंद पड़े हैं। आदिवासी वनोपज नहीं बेच पा रहे हैं। रोजगार गारंटी योजना समेत तमाम सरकारी कामकाज बंद पड़े हैं। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे का कहना था कि नक्सल समस्या पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने की जरूरत है।
नोट : लेखक राष्ट्रीय साप्ताहिक विदर्भ चंडिका के छत्तीसगढ़ ब्यूरो प्रमुख हैं।
...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
जवाब देंहटाएंबच के रहना पडेगा भइया।
जवाब देंहटाएंक्या पता इधर कब आ जाएं।
kalam ke sipahi kalam bech denge
जवाब देंहटाएंwatan ke rahi sadak bech denge
mali ke bhesh me rahta haibhediya
jarurat pade to kafan bech denge